“मालती, मेरे मोबाइल में अभी भी कुछ समस्या है, इस कारण मैं कैब का पेमेंट नहीं कर पा रहा हूं। कैश मैं ज्यादा रखता नहीं। तुम्हारे पास कैश है तो पेमेंट कर दो या फिर मोबाइल से कर दो,” शेखर ने कुछ देर अपने मोबाइल पर कोशिश करने के बाद कहा। अभीअभी दोनों कहीं से घूम कर आए थे।

मालती ने पर्स खोलते हुए पूछा, “कितने?”

“बस 450 रूपए,” शेखर ने कहा।

मालती ने ₹500 का नोट शेखर की ओर बढ़ाया। शेखर ने नोट उस से ले कर कैब ड्राइवर को दिया और उस ने जो ₹50 के नोट वापस किए वह मालती को वापस करते हुए मुसकरा कर बोला, “मैं तुम्हें ट्रांसफर कर दूंगा, जब मोबाइल काम करने लगेगा।”

“वापस करने की क्या आवश्यकता है? हम साथसाथ ही तो गए थे,” मालती ने कहा।

“फिर भी...अच्छा चलता हूं, फिर मिलेंगे,” शेखर ने कहा।

“चाय नहीं पीएंगे? 10 मिनट की ही तो बात है,” मालती ने पूछा।

“कोई खास इच्छा तो नहीं थी चाय पीने की पर जब कहती हो तो इनकार करना मुश्किल हो जाता है, इसी बहाने 10 मिनट और आप का साथ मिल जाएगा,” शेखर ने उसे अंदर चलने का इशारा करते हुए कहा।

मालती का घर पहले माले पर था। सीढ़ियां चढ़ कर दोनों अंदर आ गए। मालती का बेटा कार्तिक घर में ही था और बालकनी के पास खड़ा था इसलिए उन की बातें सुन रहा था। उन्हें ऊपर आते देख वह दरवाजे के पास पहुंच चुका था और जैसे ही डोरबेल बजी उस ने दरवाजा खोल दिया।

“हैलो अंकल," उस ने शेखर का अभिवादन किया और सोफे की ओर बैठने का इशारा किया।

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