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‘इतना मुश्किल भी नहीं होता होगा. इसे करने वाले भी तो मेरे जैसे इंसान ही होंगे. फिर मैं क्यों नहीं?’ सोचते हुए अनुभा ने अपने भीतर की शक्ति को संजोया और इंटरनैट पर ऐसे लोगों को तलाश करने लगी, जो अकेले घूमते हैं.पता नहीं, सोशल मीडिया में कोई जासूस बैठा है क्या जो हमारे विचारों में सेंध लगाता है, क्योंकि जब से अनुभा ने सोलो ट्रैवलिंग के बारे में पढ़ना शुरू किया है, तब से हर तीसरी पोस्ट के बाद उसी से संबंधित विज्ञापन उस के मोबाइल की स्क्रीन पर आने लगे हैं.

खैर, यह एक तरह से सुविधाजनक भी है, क्योंकि उन्हीं विज्ञापनों के माध्यम से अनुभा को कुछ ऐसे ट्रैवल एजेंट्स के बारे में पता चला, जो महिलाओं की सोलो ट्रैवलिंग प्लान करवाते हैं. अनुभा ने कुछ एजेंसियों से संपर्क कर के जानकारी ली, लेकिन उस के मनमाफिक कुछ अधिक नहीं हुआ.‘जब ओखली में सिर दे ही दिया है तो फिर मूसल से क्या डरना,’ इस कहावत को याद करते हुए अनुभा ने तय किया कि वह अपनी ट्रिप खुद ही प्लान करेगी. लेकिन अब प्रश्न यह भी था कि वह अकेली जाएगी कहां?आने वाला मौसम सर्दी का था. अनुभा ने जैसलमेर जाने का मन बनाया. सुन रखा था कि वहां दिसंबर के आखिरी सप्ताह में देशी और विदेशी पर्यटकों की बहुत भीड़ होती है, इसलिए अनुभा ने जैसलमेर घूमने के लिए मध्य दिसंबर को चुना.

अनुभा ने नैट पर सर्च किया. दिल्ली से जैसलमेर के लिए सीधी फ्लाइट उपलब्ध थी. पर्यटन स्थल होने के कारण वहां होटलों की खासी तादाद थी. अनुभा ने इस के लिए भी गूगल की मदद ली और एक चारसितारा रिसौर्ट में 4 दिन और 3 रात का पैकेज बुक करवा लिया, जिस में एक रात रेतीले टीलों पर आलीशान टैंट में बिताना भी शामिल था. लोकल साइट सीन और आसपास भ्रमण आदि के लिए गाड़ी और एक अनुभवी गाइड भी इसी पैकेज में शामिल था.

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