नईम ने अपने मालिक बाबू सेठ को सम?ाने की कोशिश की लेकिन सेठ को नईम पर बहुत गुस्सा आया.
रात के 2 बजे तक भी उस जख्मी को होश नहीं आया. मैं ने भी घर फोन कर के बता दिया कि मैं देरी से घर लौटूंगा. घर पर सभी चिंतित हो गए.
नईम ने एक पुलिस वाले को 50 रुपए का नोट दे कर ट्रक के सामने की भीड़ कम करने के लिए कहा. पुलिस हवलदार ने नोट जेब में डाल कर हाथ की लाठी पटक कर ट्रक के सामने जमा भीड़ को कम कर दिया.
नईम मेरी ओर देख कर कहने लगा, ‘‘साहब, आप मेरा साथ नहीं छोड़ना, आप तो मेरे गवाह हो. मैं ने कोई बुरा काम नहीं किया है और एक आदमी की जान बचाने से कोई बड़ा काम नहीं हो सकता,’’ फिर वह अपने हाथ में मेरा हाथ ले कर बोला, ‘‘पुलिस का कोई भरोसा नहीं. वे यह आरोप मु?ा पर डाल देंगे.’’
‘‘नहीं, ऐसा नहीं होगा,’’ मैं ने नईम को धीरज बंधाने की कोशिश की.
मैं उस का हाथ पकड़ कर जख्मी के बिस्तर की ओर बढ़ गया. जख्मी व्यक्ति की सांस ठीक चल रही थी.
उसी समय 5-7 औरतें चीखती- चिल्लाती आईं. एक औरत अपना सिर पीटपीट कर रो रही थी और दूसरी 2 औरतें उसे धीरज बंधाने की कोशिश कर रही थीं. कोलाहल बढ़ने लगा तो एक नर्स ने आ कर उन सब को वहां से हटा दिया.
नईम और मैं मुर?ाए चेहरे से वहीं खड़े थे. अब 4 बजने वाले थे. हम अस्पताल के मुख्यद्वार की ओर बढ़े तो हवलदार ने हमें वापस बुला लिया. हार कर हम मरीजों के वार्ड में जा कर बैठ गए.
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