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Mother’s Day 2022- टूटते सपने: क्या उसके सपने पूरे हुए?
दोपहर के भोजन का समय हो चुका था. मनोरमा ने आवाज लगाई, ‘‘चल खाना खाने, रोज तो तू मुझे याद दिलाती है लेकिन आज मैं तुझे बुला रही हूं.
भाग - 1
बूढ़ी आंखों में एक आस थी अपनों की. मन जानता था कि यह झूठी आस है, फिर भी रहरह कर यादें उन्हीं अपनों के पास ले जातीं. यही मनोस्थिति थी अरुणा और मनोरमा की.
भाग - 2
हर वर्ष की होली बेरंग ही बीत रही थी, कहां गए वो अबीरगुलाल, लालहरे रंग से भरी पिचकारियां? आश्रम में भी होली पर गुझिया बनतीं, अबीरगुलाल भी आते किंतु उसे तो अपनी होली याद आती थी.
भाग - 3
दोपहर के भोजन का समय हो चुका था. मनोरमा ने आवाज लगाई, ‘‘चल खाना खाने, रोज तो तू मुझे याद दिलाती है लेकिन आज मैं तुझे बुला रही हूं.
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