‘‘ये बच्चियां बहुत भोली हैं. अपने भोलेपन से कुछ सोचती हैं एवं बोलती हैं.’’
‘‘मेरा मानना है कि कोनी ने जो वर्णन किया था, आप उस से अधिक प्रशंसा के योग्य हैं,’’ उन्होंने कहा.
मैं ने चुप रहना ही ठीक समझा.
‘‘गार्डन और घर बहुत सुंदर है तथा तुम ने सजाया भी बहुत सुंदर है,’’ मैं ने कोनी की प्रशंसा करते हुए कहा.
‘‘आंटी, इस तारीफ के हकदार तो पापा हैं. उन्हें भी आप की तरह घर की साजसज्जा में बहुत दिलचस्पी है.’’
कोनी ने कौफी, समोसे, रसगुल्ले काफी कुछ हमारे लिए तैयार कर रखा था. दोनों दोस्त औफिस के काम के बहाने अपनीअपनी प्लेट ले कर सरक लीं. जब काफी देर तक नहीं लौटीं, तो मुझे बेहद आश्चर्य हो रहा था कि ये दोनों लड़कियां, हम दोनों को क्यों ज्यादा से ज्यादा एकसाथ छोड़ने का प्रयास कर रही हैं. सारा माहौल ही मुझे कुछ अटपटा सा लग रहा था. मैं ने समीरा को फोन कर के बुलाया. वह हंसते हुए बोली, ‘‘मम्मा, फोन कर के क्यों बुला लिया. यहीं पर तो थी, आ जाती थोड़ी देर में.’’
‘‘तुम मुझे अकेली छोड़ कर क्यों चली जाती हो. तुम दोनों भी यहीं हमारे साथ बैठो.’’
‘‘ओह, मम्मा, अकेली कहां हैं, अंकल तो हैं न आप के साथ.’’
‘‘लगता है आप की मम्मा को मेरी कंपनी पसंद नहीं आ रही है. ये काफी शांत एवं गंभीर स्वभाव की हैं,’’ कोनी के पापा ने कहा.
‘‘अब आज्ञा दीजिए हम चलते हैं,’’ मैं ने विदा लेने हेतु कहा.
‘‘आंटी, अभी रुकिए, आज डिनर हमारे साथ लीजिए,’’ कोनी ने तत्परता से कहा.
‘‘आज माफी चाहती हूं, बेटा. डिनर फिर कभी,’’ मैं ने उठते हुए कहा.