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ऐसा माहौल देख सविता सोच में पड़ गई. इधर लौकडाउन बढ़ता जा रहा था, उधर सविता की चिंता बढ़ती जा रही थी कि अंतिम पेपर कैसे देना है, तभी ऐलान हुआ कि अब पेपर ही नहीं होगा. पिछले दिए गए पेपरोें की योग्यता के आधार पर नंबर दे दिए जाएंगे.

यह खबर सविता को राहत देने वाली लगी. अब सविता रिजल्ट के आने का बेसब्री से इंतजार करने लगी.

जुलाई के दूसरे सप्ताह में सविता का रिजल्ट आया, तो वह काफी अच्छे नंबरों से पास हो गई, वहीं रोहित का खत अलमारी में से निकाल उस का रोल नंबर कंप्यूटर की स्क्रीन पर देखा तो वह भी पास हो गया था.

रोहित का रिजल्ट जान कर सविता खुश हो गई. उस की सहेलियों में केवल मीता और सुनीता ही फेल थीं, बाकी तो सभी पास हो गई थीं.

उस खत को फिर से सविता ने पढ़ा. पढ़ते समय उस के चेहरे पर मुसकराहट थी. वहीं सविता को अपने पर गुमान हुआ कि इतनी सारी लड़कियों में रोहित को वह पसंद आई.

उसी दिन शाम को सविता ने अपने पिता से फोन मांगा.

‘‘पापा, जरा अपना फोन देना. बात करनी है,’’ सविता ने कहा, तो पापा ने जेब से निकाल कर फोन पकड़ा दिया.

फोन ले कर सविता छत पर आ गई.

‘‘हैलो रोहित, पास होने की बधाई. मुबारक हो,’’ सविता धीरे से बोली.

‘‘हैल्लो सविता...’’ रोहित की आवाज में जोशीलापन था.

"थैंक्स सविता."

‘‘तुम ने कैसे पहचाना कि मेरा फोन है?’’ सविता ने मुस्कराते हुए पूछा.

‘‘मैं तुम्हारी आवाज पहचान नहीं सकता क्या... मैं तो तभी से फोन का इंतजार कर रहा था, जब तुम्हें खत दिया था.’’

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