कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

सच जान कर आगे की सीट पर बैठे लड़के ने अपना पैन उसे दे दिया. पेपर के आखिर में जब सविता ने उसे उस का पैन लौटाया, तब  बातचीत के दौरान पता चला कि वह तो उसी के महल्ले में रहता है और उस ने अपना नाम रोहित बताया.

अंतिम पेपर देने के लिए सविता स्कूल गई तो स्कूल के बाहर नोटिस लगा था कि बोर्ड की सभी परीक्षाएं कैंसिल हो गई हैं. वहां अफरातफरी का सा माहौल था. कोई कुछ भी बताने को राजी न था. गेट पर ताला लगा था. सुरक्षागार्ड भी नदारद था.

सविता हताश होते हुए बस पकड़ने के लिए कुछ ही कदम चली होगी, तभी उसे उस की एक सहेली निशा मिल गई. उस ने सहीसही बताया कि पूरे देश में कोरोना वायरस फैल जाने के चलते ऐसा हुआ है. इस वजह से लौकडाउन भी लगाया गया है. तू जल्दी से घर जा और अपना खयाल रख. इधरउधर मत घूमना.

ऐसा कह कर सहेली निशा तो अपने रास्ते चली गई, पर उस का मन अभी भी आशंकित था. वह बस पकड़ने के लिए पैदल ही जा रही थी, तभी रास्ते में रोहित मिल गया, जो पेपर देने जा रहा था.

सविता को देखते ही उस का चेहरा खिल उठा. सविता भी उसे देख मुसकराई. रोहित ने लौटने की वजह पूछी तो सविता बोली, ‘‘रोहित, तुम्हें पता नहीं कि सभी पेपर कैंसिल हो गए हैं. आज पेपर नहीं होगा.’’

‘‘अच्छा… मुझे तो इस बारे में बिलकुल भी नहीं पता था. मैं तो पेपर देने जा रहा था. तुम्हें लौटते देखा तो सोचा कि आखिर क्या वजह हो गई कि तुम इस समय वापस लौट रही हो.’’

‘‘बस, यही बात हो गई है. अब पता नहीं, कब पेपर होगा?’’ सविता ने कहा.

‘‘जब होगा तब अखबारों में आ जाएगा. तुम चिंता मत करो,’’ रोहित उसे समझाते हुए बोला.

‘‘इस पेपर की मैं ने खास तैयारी की थी. और आज तो समय से पहले भी आ गई थी. अब क्या किया जा सकता है,’’ निराश होते हुए सविता बोली.

बातचीत के दौरान उस ने सविता को एक खत दिया. सविता पूछ बैठी, ‘‘क्या है यह?’’

‘‘घर जा कर देख लेना,’’ रोहित मुस्कान बिखेर कर बोला.

सविता ने नजर बचा कर वह खत बैग में डाला और चल पड़ी घर की ओर.

घर पहुंचते ही मां ने हैरान होते हुए सविता से पूछा, ‘‘अरे सविता, आज बड़ी जल्दी आ गई. क्या बात है… कुछ हुआ क्या…?

‘‘अच्छा, पहले यह बता कि तेरा पेपर कैसा हुआ?’’ मां ने उतावलेपन से पूछा.

‘‘मम्मी, आज का तो पेपर ही कैंसिल हो गया. कइयों के तो और भी पेपर छूट गए हैं. मेरा तो यह आखिरी था,’’ निराश भरे लहजे में सविता बोली.

‘‘क्यों… ऐसा कैसे?’’ मम्मी ने हैरान होते हुए पूछा.

‘‘क्योंकि मम्मी, कोरोना महामारी पूरे देश में फेल गई है. इस वजह से लौकडाउन लगा दिया गया है. आज तो मैं जैसेतैसे आ गई, पर अब आने वाले दिनों में और सख्ती बरती जाएगी. ऐसा मुझे एक सहेली ने बताया है,’’ सविता निराश भरे लहजे में मां को बता रही थी.

‘‘अच्छा…’’ यह सुन कर मां का मुंह खुला का खुला रह गया.

खाना खा कर सविता अपने कमरे में गई और रोहित का दिया खत पढ़ने लगी. खत के अंत में उस ने अपना रोल नंबर व मोबाइल नंबर लिखा था.

रोहित का खत पढ़ने के बाद सविता ने अपनी अलमारी में उसे रख दिया.

शाम को सविता ने टैलीविजन देखा तो उस की आंखें हैरानी से फटी रह गईं, क्योंकि सरकार ने पहले तो भारत बंद के नाम पर एक दिन का लौकडाउन किया और शाम को 5 बजे तालीथाली बजवाई, फिर अगले दिन से ही एक हफ्ते का और फिर 19 दिन का, फिर दीवाली जैसा उत्सव रात 9 बजे 9 दीए जला कर घर की चौखट या छत पर लगाने की गुहार के बाद 21 दिन का और लौकडाउन बढ़ा दिया. अभी तो पता नहीं कि कितने दिनों का और लौकडाउन चलेगा.

एक ओर लौकडाउन का सख्ती से पालन हो रहा था, वहीं कोरोना भी अस्पतालों में अपने पैर पसार रहा था. कोरोना मरीजों की तादाद दिनोंदिन बढ़ती जा रही थी. कोरोना को ले कर लोग डरे हुए थे, वहीं मास्क पहन कर निकलना अब उन की मजबूरी हो गया था.

यहां तक कि कोरोना के चलते सभी को घरों में कैद कर दिया गया था. जो जहां था, वहीं का हो कर रह गया. कइयों की तो रोजीरोटी छिन गई. स्कूल बंद, औफिस बंद, कारखाने बंद. बसें बंद, रेलें बंद, सड़कें सूनी. हर चौकचौराहों पर पुलिस मुस्तैदी से अपनी ड्यूटी निभा रही थी. बाहर काम पर जाने वालों से पुलिस सख्ती के साथ पूछताछ कर रही थी.

वहीं कोरोना ज्यादा न फेले, इसलिए बुजुर्गों को खासतौर से हिदायत दी गई थी कि घर से बाहर बिलकुल न जाएं. साथ ही, यह भी कहा जा रहा था कि यदि जरूरी काम से बाहर जाना ही हो, तो चेहरे पर मास्क लगाएं, लोगों से 2 मीटर की दूरी रखें. जब भी बाहर से आएं तो नहाएं भी. साफसफाई का खास ध्यान रखें वगैरह. यह वायरस खासा खतरनाक है. बचाव ही बेहतर इलाज है. जितना बच सकें, बचें.

 

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...