अनुपम, बिशनलाल, राकेश और चांद मोहम्मद अलगअलग अपराध में एकसाथ जेल में बंद थे. उन्हें रसोईघर में कैदियों के लिए खाना बनाने का काम मिला. इसी बीच अनुपम ने उन तीनों को आपबीती सुनाई कि किस तरह वह जेल में पहुंचा.
बैरक में सन्नाटा छा गया. बाकी तीनों के चेहरों पर भी उदासी थी. रात हो चुकी थी. गार्डों की ड्यूटी बदल चुकी थी.
‘‘और तुम्हारे परिवार की कोई खैरखबर?’’ चांद मोहम्मद ने पूछा.
‘‘नहीं, कुछ पता नहीं. कोई आज तक आया भी नहीं, ‘‘अनुपम की आंखों से आंसू बहने लगे.
सुबह 4 बजे गार्ड ने ताला खोला. वे सभी रसोईघर की ओर चल दिए. दोपहर में फिर ‘टनटनटन’ की आवाज हुई. सब को अपनेअपने बैरक में जाना था.
धीरेधीरे कर के सब बैरक में पहुंचे. गार्ड ने गिनती की. गिनती मिलते ही गार्ड ने ताला लगाया. सब अपना रूखासूखा खा कर एकदूसरे से बातचीत करने लगे. कुछ सो गए.
‘‘मेरी तो सुन ली, अपनी भी कहो,’’ अनुपम ने राकेश से कहा.
‘‘पहले मेरी सुन लो. मेरा मन शायद कहने से हलका हो जाए,’’ बिशनलाल ने कहा.
‘‘अच्छा तुम्हीं कहो,’’ राकेश बोला.
‘‘बड़े मजे और चैन के साथ जिंदगी कट रही थी. हम तेंदूपत्ता और महुआ बेचते थे. महुए की शराब पीते थे. अपने में मस्त रहते?थे. लेकिन न जाने किस की नजर लग गई हमारे जंगलों को.
‘‘माओवादी अपनी अलग सरकार बना रहे थे. जो उन के विरोध में होता, उसे गोली मार दी जाती. फिर पुलिस और माओवादियों के बीच में हम आदिवासी पिसने लगे.
‘‘पुलिस को हम पर शक हो गया था कि आदिवासी माओवादियों का सहारा बनते हैं. माओवादियों को यह शक होता था कि आदिवासी पुलिस की मुखबिरी करते हैं.
‘‘पुलिस के साथ माओवादियों की इस लड़ाई में शिकार होते हैं हम जैसे कमजोर, शांत आदिवासी.
‘‘पहले जंगल महकमे वाले हम आदिवासियों पर जोरजुल्म करते थे, उस के बाद नक्सलवादी आए. फिर अमीर लोग कारोबार करने आए. उन्होंने हम से हमारी जमीनें, हमारे जंगल छीनने शुरू कर दिए. उन की मदद सरकार और पुलिस करने लगी.
‘‘हम चारों तरफ से घिरे हुए?थे. एक ओर नक्सली, दूसरी ओर पुलिस. तीसरी ओर कारोबारी, चौथी ओर से सरकार.
‘‘इसी बीच सलवा जुडूम आ गया. अब हमारे घर जलाए जाने लगे. हमारी औरतों के साथ बलात्कार होने लगे. हमें नक्सली कह कर मुठभेड़ में मारा जाने लगा.
‘‘पुलिस अपने प्रमोशन, मैडल पाने के लिए आदिवासियों को नक्सली बता कर जेलों में भरने लगी. हमारे ही लोग अब हमारे दुश्मन बन चुके थे. हमारा अमनचैन सब लुट चुका था.
‘‘एक दिन एक पुलिस ने मुझ से कहा, ‘हमारे लिए तुम जासूसी करो. नक्सलयों की सूचना दो.’
‘‘मैं ने गुस्से में कहा, ‘और बदले में आप हमारे लोगों को नक्सली बता कर फर्जी मुठभेड़ में मारो. हमारी औरतों की इज्जत लूटो. कारोबारियों से पैसा ले कर हमारे घर जलाओ.’
‘‘मेरी बात से वह पुलिस अफसर भड़क गया. उस ने गुस्से में कहा, ‘नेता मत बनो. तुम अपने बारे में सोचो.’
‘‘‘और नक्सलियों को पता चल गया, तो उन से हमें कौन बचाएगा?’ मेरे कहने पर पुलिस अफसर ने हंसते हुए कहा, ‘मौत तो दोनों तरफ है. तुम चुन लो कि किस तरह की मौत मरना चाहते हो. नक्सली एक झटके में मार देंगे और हम तिलतिल कर मारेंगे.’
‘‘मुझे लगा कि अब बस्तर के ये जंगल हमारे लिए मौत के जाल बन चुके हैं, लेकिन हम जाएं तो जाएं कहां? रात का समय था. उमस थी. झींगुरों की आवाज अचानक तेज हो गई. मैं समझ गया कि कुछ गड़बड़ है.
‘‘फिर हमारी बस्ती पर तेज लाइट पड़ी. पुलिस अफसर की आवाज सुनाई दी. आवाज रात के सन्नाटे में गूंज रही?थी. हमें अपनी बस्ती खाली करने के लिए कहा जा रहा था.
‘‘तभी गोलियों की आवाज सुनाई दी. नक्सलियों ने पुलिस पर हमला बोल दिया था. बचाव में पुलिस वाले भी छिपतेछिपाते नक्सलियों पर हमला करने लगे. लेकिन नक्सलियों की घेराबंदी तगड़ी थी. कई पुलिस वाले मारे गए. कुछ घायल हुए थे. कुछ जान बचा कर अंधेरे का फायदा उठा कर भाग गए.
‘‘इस गोलाबारी में बस्ती के भी कुछ लोग मारे गए. तभी नक्सली कमांडर वीरन की आवाज सुनाई दी, ‘लाल सलाम.’
‘‘नक्सलियों ने भी ऊंची आवाज में कहा, ‘लाल सलाम.’
‘‘बस्ती के लोग अपनेअपने घरों से बाहर आए. नक्सली कमांडर ने कहा, ‘वीरन आ गया है. अब जो तुम्हें परेशान करेगा, वह ऐसे ही कुत्ते की मौत मरेगा.’
‘‘बस्ती वालों के लिए वीरन इस समय तो फरिश्ता था, लेकिन जान बचा कर भागते हुए एक पुलिस अफसर ने वीरन का ‘लाल सलाम’ सुन लिया था.
‘‘दूसरे दिन पुलिस की कई गाडि़यां आ गईं और बस्ती पर हमला बोल
दिया. आदिवासियों को लाठियों, बैल्टों से पीटते हुए पुलिस की गाड़ी में जानवरों की तरह भरा जाने लगा.
‘‘पुलिस अफसर चीख रहा था, ‘सब को गिरफ्तार करो. नक्सलियों को सपोर्ट करते हैं सब. एकएक पुलिस वाले की मौत का बदला लिया जाएगा.’
‘‘जो आवाज उठा रहा था, उसे गोली मारी जा रही थी. दिनदहाड़े औरतों को खींच कर ले जाया जा रहा था. उन के साथ जबरदस्ती की जा रही?थी.
‘‘मैं ने भी भागने की कोशिश की. पुलिस अफसर ने मुझ पर गोली चलाई. गोली मेरे कंधे पर जा लगी. मैं वहीं चीखते हुए गिर गया. उस के बाद मुझे वीरन के दल का नक्सली बता कर जेल भेज दिया गया.
‘‘पता नहीं कितने आदिवासी किसकिस जेल में?थे. औरतों के साथ क्याक्या हुआ? कितने घर जलाए गए. बस्ती अब है भी या नहीं…
‘‘उस पुलिस अफसर को मालूम था कि मैं पढ़ालिखा हूं. पत्रकारों को इंटरव्यू भी दे चुका हूं, इसलिए मुझे खतरनाक नक्सली बता कर दिल्ली भेज दिया गया. सब बरबाद हो गया.’’
बिशनलाल की यह दास्तान सुन कर सब सकते में थे. बिशनलाल की आंखों में आंसू थे.
तभी सीटी की आवाज सुनाई दी. जेल के अंदर जेल गार्ड द्वारा सीटी बजाने का मतलब है खतरा.
सीटी बजने के बाद होने वाले अंजाम को कैदी बखूबी जानते थे. सीटी बजती रही और सारे जेल वाले अपनीअपनी लाठियों के साथ इकट्ठा होते रहे. माहौल में अजीब सा डर भर गया. इमर्जेंसी अलार्म बजाया गया, ताकि वे जेल गार्ड भी अपने कमरों से तुरंत ड्यूटी पर आ सकें, जिन की ड्यूटी इस वक्त नहीं थी.
थोड़ी देर में पूरी जेल छावनी में बदल गई. सारे कैदी दौड़ कर अपने बैरक के अंदर भागे.
जेल सुपरिंटैंडैंट, जेलर, उपजेलर, हवलदार सभी जेल गार्ड बैरक नंबर 2 के सामने खड़े थे. एकएक कैदी को बाहर निकाल कर लाठियोंजूतों से गिरागिरा कर पीटा जा रहा था.
कैदियों की चीखों से आसमान में उड़ते पंछी भी डर गए थे. सब पिट रहे थे और यही कह रहे थे कि ‘साहब, हम ने कुछ नहीं किया’, लेकिन वही गार्ड जो सारे कैदियों के बड़े भाई, दोस्त जैसे रहते थे, इस घड़ी बेरहम बने हुए थे.
यही वह समय होता है, जब जेल प्रशासन को अपनी धाक जमाने का मौका मिलता है. इस समय बड़े से बड़ा खतरनाक कैदी भी पनाह मांगने लगता है. बात बिगड़ने पर बाहर की फोर्स भी आ कर मोरचा संभाल लेती है.
जेल सुपरिंटैंडैंट ने कहा, ‘‘किस ने झगड़ा किया था?’’
बैरक के नंबरदार से पूछा गया. बैरक का नंबरदार, जो खुद दर्द से कराह रहा?था, ने बताया, ‘‘नए कैदी सोमेश से सुजान सिंह ने कहा था कि मुलाकात में अपने घर के लोगों से 10 हजार रुपए मंगवाओ. सोमेश ने जेलर से शिकायत करने की धमकी दी, तो गुस्से में सुजान सिंह और उस के साथियों ने सोमेश पर बुरी तरह से हमला कर दिया और उस के चेहरे पर ब्लेड मारा.’’
जेल सुपरिंटैंडैंट ने गार्डों से कहा, ‘‘सुजान सिंह और उस के साथियों को अभी ले कर आओ.’’
सुजान सिंह और उस के 5 साथी सामने लाए गए और जेल सुपरिंटैंडैंट का इशारा मिलते ही गार्डों ने उन पर बेतहाशा लाठियां बरसाना शुरू कर दिया. ‘हायहाय’ की दर्दनाक चीखें गूंजने लगीं.
‘‘इन पर केस बनाओ,’’ जेल सुपरिंटैंडैंट ने गुस्से से कहा और वापस दफ्तर की ओर चल दिए. उन के पीछेपीछे जेलर, उपजेलर और जेल के मुख्य द्वार पर तैनात संतरी भी चल दिए.
जेल गार्डों ने डर के इस माहौल का खूब फायदा उठाया. वे हर नए और कमजोर, डरे हुए कैदियों को धमका कर उन से पैसों की मांग करते. उन के परिवार द्वारा भेजे गए सामान में से अपने काम का सामान छीन लेते.
वैसे भी मुलाकात के समय मुख्य द्वार पर 2 सिपाहियों की ड्यूटी रहती है. एक रजिस्टर में लिखता, दूसरा मुलाकात करने वाले कैदी पर नजर रखता कि कहीं वह कोई गैरकानूनी सामान तो अंदर नहीं ला रहा है.
लेकिन भ्रष्टाचार यहां भी था. हर मिलने आने वाले से मुलाकात के नाम पर 10 रुपए लिए जाते. सुबह 8 बजे से दोपहर 12 बजे तक ही मिलने का समय होता.
अंदर कैदियों की तादाद 450-500 होती. जिसे 5 मिनट से ज्यादा मिलना हो, उस से ज्यादा पैसे की मांग की जाती. कोई अपनी बीवीबच्चों से कईकई दिनों बाद मिल रहा होता, तो उस की बीवी 10-20 रुपए निकाल कर दे देती.
जेल में कई बार सरकारी अफसर, डाक्टर, इंजीनियर, बड़े कारोबारी भी आ जाते, तब तो मुलाकात में ड्यूटी करने वालों की चांदी होती. ऐसे थोड़े ही जेल में अपराधियों के पास गांजा, पिस्तौल, मोबाइल जैसी चीजें पहुंच जाती थीं.
जो दमदार कैदी होते, उन के साथी बाहर से जेल प्रशासन के लोगों द्वारा अंदर मनचाहा सामान पहुंचाते. बदले में जेल प्रशासन को?भी खुश किया जाता.
मुलाकात के दौरान गेट पर ड्यूटी के लिए जेल के गार्ड, हवलदार बड़ी रकम जेलर व सुपरिंटैंडैंट को पहुंचाते. रसोई में काम करने वाले इन चारों कैदियों की पिटाई नहीं हुई, क्योंकि ये चारों न कभी जेल प्रशासन से उलझे, न किसी गार्ड से कभी ऊंची आवाज में बात की, बल्कि जेल गार्डों की हर सही और गलत बात भी मानी.
जेल में कुछ गार्डों द्वारा नशीली चीजों जैसे गांजा, शराब, अफीम को रसोई से ही बेची जाती. बीड़ी, सिगरेट, तंबाकू तो बिलकुल खुलेआम बेचे जाते. कोई रोक नहीं थी.
आज रविवार था. नियम के मुताबिक कैदियों को पूरी, आटे का हलवा, सब्जी दी गई. चारों अपने बैरक में बैठे कैदियों की पिटाई की चर्चा कर रहे थे.
क्या जेल में हुई कैदियों की पिटाई से वहां बगावत हो गई? उन चारों कैदियों का क्या हुआ? पढि़ए अगले भाग में…