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रात में करीब सवा 2 बजे रमाकांत के मोबाइल की घंटी बजी. 65 वर्षीय रमाकांत ने कमरे की बिजली जला कर मोबाइल देखा, मोबाइल की स्क्रीन पर अमित का नाम आ रहा था,"हैलो... अमित... क्या बात है, सब ठीक तो है न?“ रमाकांत ने घबराते हुए पूछा.

“अंकल, नेहा को अभीअभी हौस्पिटल में ऐडमिट किया है. डाक्टर ने घर के किसी बड़े आदमी को बुलाने के लिए कहा है," अमित ने भर्राए गले से कहा.

रमाकांत ने अपनी पत्नी शिल्पा को उठाया और 5 मिनट में तैयार हो कर हौस्पिटल के लिए रवाना हो गए. चारों तरफ खामोशी पसरा हुआ था. लैंपपोस्टों की रोशनी ने सड़कों पर दूर तक पीली चादरें बिछा दी थीं मानो किसी आयोजन से पहले विशाल मैदान में पीले रंग की दरियां बिछाई गई हों. सड़कें बिलकुल वीरान थीं। रमाकांत जिस गति से कार चला रहे थे उतनी ही गति से अतीत की यादें उन के स्मृतिपटल पर किसी फिल्म के दृश्यों की तरह अंकित हो रही थी...

अमित उन के बहुत ही घनिष्ठ मित्र आलोक का इकलौता बेटा, बचपन से ही होशियार और होनहार। आलोक और मोहिनी ने अमित के कैरियर के लिए अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया था. कुछ समय तक तो आलोक और मोहिनी की दुनिया अमित के इर्दगिर्द सिमट कर रह गई थी. आलोक के दोस्त अकसर उस पर यह फिकरा कसते थे,"आलोक, अमित के अलावा और भी जहां है... कुएं का मेंढक मत बनो.”

अमित के सौफ्टवेयर इंजीनियर बनने और एमबीए करने तक आलोक प्रसाद सरकारी नौकरी से रिटायर्ड हो गए थे. कुछ ही दिनों के बाद अमित को एक मल्टीनैशनल कंपनी में शानदार पैकेज मिल गया. अमित की ऊंची उड़ान से आलोक और मोहिनी बेहद खुश थे. अमित उन के सपनों को साकार कर रहा था, अब वे अमित के लिए बहू की तलाश में जुट गए ताकि समय रहते उस का विवाह कर के वे सामाजिक दायित्व से नजात पा कर अपने गांव में सुकून से रहने के लिए चले जाएं.

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