राइटर- डा. कुसुम रानी नैथानी
रजत अपनी बेटी की शादी में मेहमानों की तरह आया था. शलाका की ससुराल यहां से दूर रुद्रपुर में थी. अमरनाथजी ने उन्हें शलाका की परिस्थिति पहले ही बता दी थी कि मायके के नाम पर उस का केवल ननिहाल ही था. साथ में अपने अनुभव की बात भी कह दी, "हमारी शलाका पढ़ने में बहुत होशियार है. हो सके तो इसे नौकरी करने की छूट दे देना. इन दोनों बहनों ने अपने जीवन में बहुत कष्ट उठाए हैं."
"आप चिंता न करें बाबूजी. मैं इस का पूरा खयाल रखूंगा."
उन्होंने अपनी बात रखी और शादी के चार साल बाद एक बच्चा हो जाने के बाद उस की भी वहीं रुद्रपुर में
अच्छी जगह नौकरी लग गई. वह अपने पति श्रेय और परिवार के साथ बहुत खुश थी.
मौसी के साथ रहते हुए उन की निगरानी में इशिता भी बहुत अच्छा प्रदर्शन कर रही थी. उस ने भी एमएससी करने के बाद नौकरी के लिए आवेदन करना शुरू कर दिया. उस ने कई कंपीटीशन दिए और
उस का एक जगह चयन भी हो गया.
ट्रेनिंग के दौरान इशिता की मुलाकात अशरफ से हुई और उस ने उसे अपना जीवनसाथी बनाने का मन बना लिया.
इशिता ने जब यह बात नानानानी के सामने रखी तो थोड़ी देर के लिए वे परेशान हो गए.
इशिता के तर्क और इच्छा के आगे उन्होंने अपनी नाराजगी खत्म कर दी. अमरनाथजी बोले, "अगर तुम्हारी यही इच्छा है तो हम तुम्हें रोकेंगे नहीं. अच्छा रहेगा कि तुम कोर्ट मैरिज कर लो."
"ठीक है नानाजी. हमें कोई आपत्ति नहीं है."
"लेकिन, मुझे आपत्ति है," रमा बोली.