‘‘मौम के लिए मेरे मन में बहुत सम्मान है, आवश्यकता पड़ने पर मैं उन के लिए कुछ भी कर सकती हूं. पर अभी प्रश्न वह नहीं है. अभी वे मेरी शादी को बचाने में लगी हैं. आप विश्वास नहीं करोगी कि शादी के बाद सुकेतु कितना बदल गया है. हर बात में अपनी ही चलाता है. मैं तो जैसे कुछ हूं ही नहीं. मौम ने समझाया अभी से नकेल कस कर नहीं रखी तो जीवन भर पैर की जूती बना कर रखेगा. अत: अभी से सावधान हो जाओ. सावधानी हटी दुर्घटना घटी.’’

‘‘क्या कह रही है? यह सब तुझ से मौम ने कहा? मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा. पर तुझे मौम से सुकेतु की शिकायत करने की क्या आवश्यकता थी?’’

‘‘मैं ने शिकायत नहीं की थी. मौम ने ही खोदखोद कर पूछा था... एक मां अपनी बेटी की चिंता नहीं करेगी तो कौन करेगा?’’

‘‘मैं मौम की आलोचना नहीं कर रही. उन की हम दोनों के लिए चिंता स्वाभाविक है, पर पतिपत्नी का संबंध बहुत नाजुक होता है. इस में किसी तीसरे का हस्तक्षेप घातक हो सकता है.

तुम अब छोटी बच्ची नहीं हो. अपने निर्णय स्वयं लेने सीखो.’’

‘‘छोड़ो ये सब दीदी. तुम बताओ घर कैसे पहुंची? घर पहुंच कर कोई परेशानी तो नहीं हुई?’’

‘‘लो भला परेशानी क्यों होने लगी? सुकेतु हमें एअरपोर्ट से घर ले आया. हमारी खूब खातिरदारी की. हमारा दिन तो खूब अच्छा गुजरा. तुम्हारी कमी अवश्य खली. तुम भी आ जातीं, तो चार चांद लग जाते.’’

‘‘1 दिन और दीदी उस के बाद तो पूरे 4 दिन की छुट्टी ली है मैं ने. खूब घूमेंगेफिरेंगे. मैं ने कई अच्छे रेस्तरां ढूंढ़ रखे हैं. कल के बाद घर में खाना बंद. ऐसेऐसे व्यंजन खिलाऊंगी तुम्हें कि मन प्रसन्न हो जाएगा.’’

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