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‘‘तुम शुरू करो, मैं बुलाता हूं,’’ लेकिन अमर के बुलाने से पहले ही वह आ गई और आते ही कहने लगी, ‘‘मैं सनी को सुलाने गई थी, वैसे मुझे भी बड़ी जोर की भूख लगी है,’’ और वह कुरसी खींच कर विकास के सामने बैठ गई.

विकास सोच रहा था यह प्यार भी अजीब चीज है. हम हमेशा उसी चीज से प्यार करते हैं, जो हमारे बस में नहीं होती. सब जानते हुए भी मजबूर हो जाते हैं. प्रिया का चेहरा आज भी खिलते गुलाब जैसा था. आज भी उस पर नजरें टिक नहीं रही थीं. जब तक लड़कियों की शादी नहीं हो जाती तब तक उन्हें लगता है वे अपने प्यार के बिना मर जाएंगी, लेकिन फिर वही लड़कियां अपने पति के प्यार में इतना आगे निकल जाती हैं कि उन्हें अपना अतीत किसी बेवकूफी से कम नहीं लगता.

विकास के मन में आया कि वह उस के हंसतेबसते घर को बरबाद कर दे... अगर वह बेचैन है तो प्रिया को भी कोई हक नहीं है चैन से रहने का...

‘‘विकास, तुम खा कम और सोच ज्यादा रहे हो.’’

‘‘नहीं, ऐसी बात नहीं,’’ अमर के कहने पर वह चौंका.

‘‘लगता है खाना पसंद नहीं आया आप को,’’ प्रिया कहते हुए मुसकराई.

‘‘नहीं, खाना तो बहुत टेस्टी है.’’

‘‘प्रिया खाना बहुत अच्छा बनाती है,’’ अमर ने कहा तो वह हंस दी, फिर उठते हुए बोली, ‘‘आप लोग बातें करो, मैं चाय बना कर लाती हूं.’’

कुछ ही देर में प्रिया ट्रे उठाए आ गई. और बोली, ‘‘आप बता रहे थे आप के दोस्त शाम को चले जाएंगे... कम से कम 1 दिन तो आप को इन्हें रोकना चाहिए...’’

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