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सविताबारबार घर की बालकनी से नीचे झांक रही थी. पार्वती अभी तक आई नहीं थी. बेकार ही सामान मंगवाया, सबकुछ तो रखा था. थोड़ा कम में काम चल जाता पर बेवजह अधिक जमा करने के चक्कर में उस बेचारी को दौड़ा दिया. तभी नीचे पार्वती को आता देख उन्होंने राहत की सांस ली और लगभग दौड़ कर दरवाजा खोला.

लगभग हांफती हुई पार्वती ने दोनों थैले घर के कोने पर पड़ी एक टेबल पर रखे और नीचे बैठ गई. ‘‘बड़ी मुश्किल से मिला है दीदी, सभी दुकानों पर भारी भीड़ थी. सोसाइटी की दुकान पर तो खड़े होने की जगह भी नहीं थी, फिर बाहर जा कर कोने वाली एक दुकान से खरीद कर ले आई हूं.’’

‘‘ओह, इतनी दूर क्यों गईं, नहीं मिलता तो न सही, ऐसी भी क्या जरूरत थी?’’ ‘‘नहीं दीदी,पता नहीं यह लौकडाउन कब तक चलेगा? स्थिति बहुत खराब हो चली है. बाहर निकलना खतरे से खाली नहीं. बस, आप को किसी चीज की कमी नहीं होनी चाहिए.’’

‘‘कितनी चिंता करती है मेरी? चल सब से पहले हाथों और सामान को सैनिटाइज कर ले.’’रात को बिस्तर पर सोते समय सविता की आंखों से नींद कोसों दूर थी. सच में कितना करती है पार्वती उस के लिए. अगर वह नहीं होती तो उस का क्या होता? सोचते हुए सविता 2 साल पहले उन यादों के झरोखे में जा पहुंची जहां पति के अत्याचारों से तंग पार्वती से वह पहली बार अपने कालेज में मिली थी.

वह जिस कालेज में पढ़ाती थी, वहां पार्वती भी बाई का काम करती थी. लगभग रोज ही उस का सूजा चेहरा और शरीर पर जगहजगह पड़े नील स्याह निशान पति के दुर्दांत जुल्मों की इंतहा की याद दिलाते रहते. उस की नौकरी के बल पर ऐयाशी करने वाला उस का शराबी पति बातबात पर उसे पीटा करता था. उन दोनों की एक ही लड़की थी जो शादी कर अपनी ससुराल जा चुकी थी.

उस वक्त उस ने आगे बढ़ कर न सिर्फ उस की मदद की थी बल्कि उस के पति को सलाखों के पीछे भी पहुंचाया था. दुखी पार्वती को घर लाते वक्त उसे बोध भी न था कि जिसे निराश्रित, निस्सहाय समझ वह मानवता के नाते आश्रय दे रही है, वही कल को उस का सब से बड़ा संबल बन जाएगी.

सविता के पति पहले ही एक सड़क दुर्घटना में उसे छोड़ कर जा चुके थे. इकलौता बेटा बहू के साथ कनाडा में रह रहा था. बेटेबहू के बहुत कहने के बावजूद वह उन के साथ कनाडा नहीं शिफ्ट हुई थीं, क्योंकि हाथपांव के चलते रहने तक वे किसी पर बोझ नहीं बनना चाहती थीं.

वैसे भी नौकरी के 8-10 साल बचे थे और स्वावलंबी सविता अपने बल पर ही अपनी जिंदगी जीना चाहती थीं.तब से वह अपने फ्लैट पर अकेली रहती आई थी. वैसे तो कालेज में बच्चों के बीच वह काफी व्यस्त रहती थी, पर छुट्टी का दिन उस से काटे न कटता था.हां, पार्वती के आने से उस की जिंदगी बेहद आसान हो चली थी. पार्वती के रूप में

उसे एक सखी, सहायक और शुभचिंतक मिल गई थी, जिस ने बड़ी कुशलता से उस के घर को संभाल लिया था और इस तरह दोनों एकदूसरे का सहारा बन कर अपनी जिंदगी जिए जा रही थीं. हालांकि बेटेबहू ने बारबार उसे पार्वती के लिए चेताया था.उन का कहना था कि किसी पर इतनी जल्दी ऐसा भरोसा करना ठीक नहीं. शायद वे अपनी जगह सही भी थे. मगर कोई रिश्ता न होते हुए भी पार्वती उस की कितनी अपनी हो चुकी है यह बात सिर्फ वही समझती थी. यही सब सोचतेसोचते जाने कब सविता को नींद ने आ घेरा.

सुबह सविता की नींद कुछ देर से खुली. घर का काम निबटा कर पार्वती नहाधो चुकी थी. सविता को उठा देख वह झटपट चाय बना लाई. बालकनी में बैठ वे दोनों चाय की चुसकियां ले ही रही थीं कि दरवाजे की बैल बजी. लौकडाउन के दौरान किसी के कहीं भी आनेजाने पर पूर्णत: पाबंदी लगी हुई है. फिर कौन हो सकता है? ‘‘दीदी, मैं देखती हूं, जो भी होगा बाहर से चलता कर दूंगी,’’ चेहरे पर मास्क लगाए पार्वती ने उठ कर दरवाजा खोला.

‘‘माफ कीजिएगा, थोड़ी शक्कर मिल सकती है क्या?’’‘‘आप यहीं ठहरिए, मैं दीदी से पूछ कर बताती हूं,’’ कह कर पार्वती ने दरवाजा चिपका दिया.‘‘दीदी, सामने वाले फ्लैट में जो नए किराएदार आए हैं उन्हें शक्कर चाहिए,’’ पार्वती ने सविता पर प्रश्नवाचक नजर डाली.‘‘मना कर दूं क्या, कल ही लौकडाउन की घोषणा हुई है, तो क्या ला कर नहीं रख सकते थे? एक बार दिया तो बारबार किसी भी चीज को मांगने आ जाएंगे.’’

‘‘नहींनहीं… ऐसा कर, एक डब्बे में आधा किलोग्राम के करीब दे दे. अपने पास कोई कमी नहीं, बहुत रखी है,’’ सविता ने चाय का कप उसे पकड़ाते हुए कहा.‘‘लेकिन दीदी…’’‘‘अरे जितना कहा है उतना कर दे न,’’ सविता ने झूठमूठ की त्योरियां चढ़ाईं.‘‘यह लीजिए शक्कर…’’ पार्वती ने आगंतुक को घूरा.‘‘आप की मैडम दिखाई नहीं दे रहीं?’’‘‘आप को मैडम चाहिए या शक्कर?’’ पार्वती ने अपनी खीझ उतारी. हाथ में शक्कर की थैली लिए वे महानुभाव जैसे आए थे वैसे ही अपने फ्लैट में वापस लौट गए.

‘‘बड़ा अजीब था. आप के बारे में पूछने लगा. भला यह क्या बात हुई? ऐसे लोगों से तो थोड़ी दूरी ही अच्छी है,’’ पार्वती के स्वर में झल्लाहट थी.‘‘जाने दे पार्वती, अभी नएनए आए हैं. ज्यादा किसी को जानते नहीं होंगे इसलिए पूछ रहे होंगे,’’ कह कर सविता ने बात खत्म की.सरकार द्वारा लौकडाउन का दूसरा चरण और भी सख्ती से लागू करदिया गया था. कुछ दिन बाद शाम के वक्त सविता और पार्वती टीवी पर कोरोना के बारे में न्यूज देख रही थीं कि तभी बैल बजी. चिटकनी खोलते ही फिर वही सज्जन दरवाजे पर खड़े दिखाई दिए.

‘‘ओहो… चाय का दौर चालू है,’’ कह कर बड़ी ही बेतकल्लुफी से वे सामने वाले साफे पर जा विराजे.‘‘अभी बस पी कर खत्म ही की है. आप चाहें तो आप के लिए भी…’’ अभी सविता की बात पूरी भी न हो पाई थी कि आगंतुक ने कहा, ‘‘हांहां… क्यों नहीं, चाय के लिए मना मैं कर ही नहीं सकता… हाहाहाहाहा…’’

‘मान न मान मैं तेरा मेहमान…’ मन ही मन भुनभुनाते हुई पार्वती चाय बनाने को उठ खड़ी हुई.

 

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