‘‘सुनो पार्वती, अदरक थोड़ी ज्यादा ही रखना. बिना अदरक के चाय भी कोई चाय है. दरअसल, मेरे पास आज ही अदरक खत्म हो चुकी है तो मैं ने सोचा...’’‘‘जी हां, क्यों नहीं. पार्वती, तुम साहब के लिए 2-4 अदरक की टुकड़ी भी ले आना,’’ सविता ने किचन की ओर मुंह कर के आवाज लगाई.
‘‘बंदे को ओंकार कहते हैं. एक रिटायर्ड फौजी. बस यही छोटी सी पहचान है अपनी,’’ बेबाकी से ओंकार ने अपना परिचय दिय. बातों की श्रृंखला में एक हलका सा अल्पविराम आ गया जब पार्वती ने चाय का मग और अदरक के 2 टुकड़े ला कर जरा जोर से सैंटर टेबल पर रखे.
‘‘पार्वती, बस इतना ही...’’ सविता ने आंखें तरेरीं. ‘‘हां, दीदी, अब ज्यादा अपने पास भी नहीं है.’’ ‘‘अरे, इतना बहुत है मेरे लिए. कम से कम 3-4 दिन चलेगा. वैसे चाय बहुत बढि़या बनाई है तुम ने,’’ पहला सिप लेते हुए ओंकार बोल पड़े. उन के जाने के बाद पार्वती ने बड़बड़ाते हुए पूरी जगह को अच्छे से सैनिटाइज किया और अपने काम में लग गई. उस की मुखमुद्रा देख सविता के चेहरे पर हंसी आ गई.
उस दिन सविता का जन्मदिन था. मना करतेकरते भी पार्वती ने उस की पसंदीदा रैसिपी छोलेकुलचे बना लिए. उस दिन स्वाद ही स्वाद में वह कुछ ज्यादा ही खा गई. शाम होतेहोते उस का जी मितलाया और उलटी हो गई. पार्वती ने जल्दी से ग्लूकोज का पानी पिलाया पर थोड़ी देर बाद फिर उलटी हुई. बाद में 3-4 उलटियां और होने से शरीर में पानी की कमी के चलते सविता को बहुत कमजोरी व चक्कर आने लगे. पेट में रहरह कर मरोड़ भी उठने लगी थी. वे लगातार कराह रही थीं.
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