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लेखक-रमाकांत मिश्र एवं रेखा मिश्र

‘‘मुझे ऐसा कोई खास काम नहीं करना है,’’ ममता सहजता से बोली.

मैं चुप हो गया. मुझे अचानक ममता के साथ धोखा करने का गहरा अफसोस हुआ.

‘‘मैं आप के साथ हुए हादसे से वाकिफ हूं. आप तो जानती हैं कि मैं भी कमोबेश ऐसी ही परिस्थिति का शिकार हूं. यद्यपि यह मेरा बेवजह दखल ही है, इसलिए मैं कहूंगा कि आप का इतना अधिक दुख में डूबे रहना कि दुख आप के चेहरे पर झलकने लगे, आप के और आप की बेटी दोनों के लिए अच्छा नहीं है,’’ मैं ने बातचीत शुरू कर दी.

ममता चुप रही. जैसे मेरी बात को तौल रही हो. फिर बोली, ‘‘मुझे चाचाजी ने आप के बारे में बताया था. सच कहूं तो आप के बारे में जान कर मुझे बड़ा सहारा मिला. चाचाजी ने मुझे बताया कि आप ने दोबारा शादी करने से इनकार कर दिया है. आप के इस फैसले से मुझे कितना भरोसा मिला, मैं बता नहीं सकती,’’ कह कर ममता एक पल को रुकी, फिर बोली, ‘‘मुझे आप की बात से कोई विरोध नहीं, लेकिन मैं क्या करूं? उन को मैं भूल नहीं सकती. मेरे सुख तो वही थे. बच्ची के साथ रहती हूं तो हंस जरूर लेती हूं, लेकिन मन से नहीं. सच तो यह है कि हंसी आती ही नहीं और न ही ऐसी कोई इच्छा बची है.’’

‘‘मेरे साथ भी ऐसा ही है,’’ मैं ने स्वीकार किया.

मैं और ममता दोनों ही चुप हो गए. दोनों के एहसास एक से थे. आखिरकार, मैं ने तय किया कि ममता को धोखा देना ठीक न होगा. न मैं शादी कर सकता था और न ममता. इसलिए ठीक यही था कि ममता को सब बता दिया जाता.

तभी कमला चाय ले आई. ममता ने चाय का प्याला मुझे दिया. बिस्कुट लेने से मैं ने इनकार कर दिया तो ममता ने ज्यादा इसरार नहीं किया. चाय के घूंट भरने के बाद मैं ने अपनी बात शुरू की.

‘‘मैं, दरअसल यहां पर जबरदस्ती भेजा गया हूं, क्योंकि मामाजी और लालाजी दोनों ही इतने भले इनसान हैं कि मैं उन से इनकार नहीं कर पाया.’’

ममता ध्यान से सुन रही थी.

‘‘आप तो जानती ही हैं कि लालाजी आप की शादी कर देना चाहते हैं. उन्होंने मामाजी से अपनी इच्छा बताई तो मामाजी ने मुझ से कहा. हालांकि, मामाजी भी अच्छी तरह जानते हैं कि मैं दूसरी शादी की सोचता भी नहीं. अब न तो मैं राजी था, न आप राजी थीं, इसलिए दोनों ने मुझे यह जिम्मेदारी सौंपी थी कि मैं यहां आनाजाना शुरू करूं और आप से मेलजोल बढ़ाऊं. मुझे यह भी निर्देश है कि मैं यह सब आप को कतई न बताऊं. लेकिन मैं ऐसा नहीं कर सकता, मैं न आप को धोखा दे सकता हूं न खुद को. जिस तरह हम लोग अपनेअपने दिवंगत जीवनसाथियों से जुड़े हैं, ऐसा कुछ हो पाना नामुमकिन है. इन लोगों की बात रखने के लिए मैं 2-1 बार यहां आऊंगा और फिर इन से कहूंगा कि ऐसा हो पाना संभव नहीं है.’’

मेरे चुप होते ही ममता का सिर इनकार में हिलने लगा. वह उठ कर खड़ी हो गई. मैं भी खड़ा हो गया.

‘‘आप ऐसा कुछ नहीं करेंगे. मैं आप की आभारी हूं कि आप ने सच बता कर मुझे इस घृणित प्रस्ताव से बचा लिया. मैं आप से गुजारिश करना चाहती हूं कि अब आप आइंदा कभी इस घर में मत आइएगा. न ही मुझ से, कहीं पर भी, मिलने की कोशिश कीजिएगा’’, ममता ने हाथ जोड़ दिए.

मैं ने हाथ जोड़ कर उसे नमस्कार किया और वापस कानपुर लौट आया.

मेरी खुद विवाह करने की कोई इच्छा नहीं थी. इसलिए मैं ने खुद को हलका महसूस किया. मामाजी से मैं ने सिर्फ इतना बताया कि ममता राजी नहीं है. मामा ने कुछ नहीं पूछा. मैं ने अनुमान लगाया कि मेरे स्वभाव से अच्छी तरह वाकिफ मामाजी ने यह अनुमान लगा लिया होगा कि मैं ने ममता को सच बता दिया है.

समय बीतता रहा. मेरा तबादला कानपुर से लखनऊ हो गया. लेकिन मेरी फिर कभी न तो लालाजी से और न ही ममता से मुलाकात हुई. वर्षों गुजर गए.

विपुल देहरादून के एक बोर्डिंग स्कूल में पढ़ रहा था. अक्तूबर में उस का वार्षिकोत्सव था. मैं अपनी व्यस्तता के कारण भूल चुका था कि मुझे वहां जाना है. उत्सव के 2 दिनों पहले विपुल का फोन आया तो मैं हक्काबक्का रह गया. मैं ने उस से कहा, ‘‘मैं आ रहा हूं.’’

स्टेशन फोन करने पर पता चला कि यहां से चलने वाली दोनों गाडि़यों में लंबी वेटिंग लिस्ट चल रही है. सो, रेल में धक्के खाने के बजाय मैं ने अपनी टू सीटर कार से ही देहरादून जाना तय किया.

मैं सही समय पर स्कूल पहुंच गया. मुझे कार से आया देख कर विपुल बहुत खुश था. 3 दिन यों ही गुजर गए. कार्यक्रम बहुत सफल रहा. रात में अभिभावकों का सामूहिक भोज था. वहां पर अनायास ही मेरी मुलाकात ममता से हो गई. ममता ने मुझे नमस्कार किया. मैं ने भी नमस्कार किया. ममता के बालों में सफेदी झकलने लगी थी. लेकिन अपने सादा लिबास में वह बहुत भली लग रही थी. हम लोग अधिक बात नहीं कर पाए. उस की बेटी नेहा भी उसी स्कूल में थी.

अगले दिन सुबह सभी विदा हो रहे थे, लेकिन इस इलाके में उत्तराखंड आंदोलन की वजह से चक्का जाम था. 3 दिन का बंद था. रेलें तक स्थगित हो गई थीं. मजबूरन सभी को रुकना पड़ा. दूसरे दिन प्राइवेट गाडि़यों को जाने की छूट मिली. जिन लोगों के पास अपनी गाडि़यां थीं, उन्होंने अपने रास्ते के लोगों से लिफ्ट की पेशकश की. मैं ने भी लखनऊ तक के लिए किसी एक आदमी को लिफ्ट देने की पेशकश की.

ममता यह जान कर कुछ असमंजस में पड़ी कि उसे मेरे साथ अकेले जाना पड़ेगा. लेकिन फिर वह तैयार हो गई.

 

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