कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

अगले दिन जैसे ही देव ने सान्या के मुंह से शादी की बात सुनी, वह कहने लगा, ‘‘हांहां, क्यों नहीं, शादी तो करनी ही है लेकिन इतनी जल्दी भी क्या है सान्या, थोड़ा हम दोनों और सैटल हो जाएं, फिर करते हैं शादी. तुम भी थोड़ा और नाम कमा लो और मैं भी. फिर बस शादी और बच्चे, हमारी अपनी गृहस्थी होगी.’’

देव की प्यारभरी बात सुन कर सान्या मन ही मन खुश हो गईर् और अगले ही पल वह उस की आगोश में आ गई. सान्या को पूरा भरोसा था अपनेआप पर और उस से भी ज्यादा भरोसा था देव पर. वह जानती थी कि देव पूरी तरह से उस का हो चुका है. अब उन का मिलनाजुलना पहले से ज्यादा बढ़ गया था, कभी मौल में, तो कभी कैफे में दोनों हाथ में हाथ डाले घूमते नजर आ ही जाते थे. उन का प्यार परवान चढ़ने लगा था. सान्या तो तितली की तरह अपने हर पल को जीभर जी रही थी. यही जिंदगी तो चाहती थी वह, तभी तो उस छोटे से कसबे को छोड़ कर मुंबई आ गई थी और उस का सोचना गलत भी कहां था, शायद ही कोई विरला होगा जो मुंबई की चमकदमक और फिल्मी दुनिया की शानोशौकत वाली जिंदगी पसंद न करता हो.

अभी 2-3 महीने बीते थे और देव अब सान्या के फ्लैट में ही रहने लगा था. रातदिन दोनों साथ ही नजर आते थे. लेकिन यह क्या, देव अचानक से अब उखड़ाउखड़ा सा, बदलाबदला सा क्यों रहता है? सान्या देव से पूछती, ‘‘देव कोई परेशानी है तो मुझे बताओ, तुम्हारे व्यवहार में मुझे फर्क क्यों नजर आ रहा है? हर वक्त खोएखोए रहते हो. कुछ पूछती हूं तो खुल कर बात करने के बजाय मुझ पर झल्ला पड़ते हो.’’ देव ने जवाब में कहा, ‘‘कुछ नहीं, तुम ज्यादा पूछताछ न किया करो, मुझे अच्छा नहीं लगता है.’’

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...