‘उस रात मैं उन के दुराचार का शिकार हो गई. वे दुराचार करने के बाद मुझे पहाड़ी से नीचे फेंकना चाहते थे, लेकिन बहुत संघर्ष कर के मैं वहां से जान बचा कर भाग आई.
‘भैया, दुराचार का शिकार होने के बाद मैं तत्काल आत्महत्या करना चाहती थी लेकिन उस स्थिति में मेरी सासूजी और ननद मुझे ही अपराधी मानतीं, इसलिए मैं जान बचा कर घर आई. जब मैं ने यह घटना अपनी ननद को बताई तब वे बोलीं, ‘मुझे क्या पता था कि वहां तुम्हारे साथ ऐसा होगा? हम लोग तो यही चाहते हैं कि तुम्हारी गोद भर जाए और हमारे भैया को उन का वंश चलाने वाला मिल जाए.’
‘जब मेरी सासूजी को इस घटना के बारे में मालूम पड़ा तब वे बोलीं, ‘लगता है मेरे नसीब में मेरे मरने के बाद भी मुझे पानी देने वाला नहीं है.’
‘भैया, अब तुम ही बताओ, ऐसी मैली जिंदगी जी कर मैं क्या करूं? तुम्हारे जीजाजी ने मेरे जीवन में जो अकेलापन भर दिया है उस से मैं तंग आ चुकी हूं, इसलिए सोचती हूं कि आत्महत्या कर लूं?
‘भैया, याद रखना, ये पत्र सिर्फ तुम्हारे लिए है इसलिए इस का जिक्र कभी किसी से मत करना, पुलिस से भी नहीं.
तुम्हारी दीदी लता.’
पत्र पढ़ने के बाद मेरे मन में यह बात पक्की हो गई कि दीदी की मौत के लिए सिर्फ जीजाजी दोषी हैं. अब दिल तो यही करता है कि दीदी का यह पत्र पुलिस को सौंप कर जीजाजी और तथाकथित झूठे बाबाओं को उन के किए की सजा दिलवाऊं, लेकिन दीदी के पत्र में लिखे शब्दों का सम्मान भी मुझे रखना है कि ‘भैया, याद रखना, ये पत्र सिर्फ तुम्हारे लिए है, इस का जिक्र तुम कभी किसी से न करना, पुलिस से भी नहीं.’