आज सुधीर के एक दूर के रिश्ते की मामी की लड़की सुनीता आने वाली थी. बिन बाप की लड़की थी. उसे बीएड करना था. इस लिहाज से तो वह एक साल रहेगी ही रहेगी. हालांकि सुधीर के मांबाप नाकभौं सिकोड़ रहे थे.
‘‘दीदी, बिन बाप की बेटी है. तुम लोग चाहोगे तो अपने पैरों पर खड़ी हो जाएगी. वरना मेरे पास तो कुछ भी नहीं है जिस के बल पर उस का ब्याह कर सकूं. पढ़ाईलिखाई का ही भरोसा है. पढ़लिख कर कम से कम अपना पेट पाल तो सकेगी,’’ कह कर मामी रोंआसी हो गईं.
मेरी सास ने उन्हें ढाढ़स बंधाया. मेरी सास सुधीर की तरफ मुखातिब हुईं, ‘‘सुधीर, तुम सुनीता को उस का स्कूल दिखा दो.’’
‘‘बेटा, यहां आनेजाने के लिए रिकशा तो मिल जाता होगा?’’ मामीजी मुंह बना कर बोलीं.
‘‘नहीं मिलेगा तो मैं छोड़ आया करूंगा,’’ सुधीर ने एक नजर सुनीता पर डाली तो वह मुसकरा दी.
‘‘यही सब सोच कर आई थी कि यहां सुनीता को कोई परेशानी नहीं होगी. तुम सब लोग उसे संभाल लोगे,’’ मामीजी भावुक हो उठीं. वे आगे बोलीं, ‘‘सुनीता के पापा के जाने के बाद तुम लोगों के सिवा मेरा है ही कौन. रिश्तेदारों ने सहारा न दिया होता तो मैं कब की टूट चुकी होती,’’ यह कह कर वे सुबकने लगीं.
सुनीता ने उन्हें डांटा, ‘‘हर जगह अपना रोना ले कर बैठ जाती हैं.’’
‘‘क्या करूं, मैं अपनेआप को रोक नहीं पाती. आज तेरे पापा जिंदा होते तो मुझे इतनी भागदौड़ न करनी होती.’’
‘‘आप कोई गैर थोड़े ही हैं, जीजी. हम सब सुनीता का वैसा ही खयाल रखेंगे जैसे आप उस का घर पर रखती हैं,’’ मेरी सास ने तसल्ली दी. वे आंसू पोंछने लगीं.