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मुन्ना ने जोर से कार का दरवाजा बंद किया. फिर कार चल दी. मुन्ना ने अचानक पूछ लिया, ‘‘बाबूजी, बूआ यहां कब तक रहेंगी?’’

वह चौंके, ‘‘क्यों बेटा? उस से तुम्हें क्या तकलीफ है?’’

‘‘तकलीफ की बात नहीं है, बाबूजी. मां के मरने पर बूआजी आईं तो फिर वापस गईं ही नहीं.’’

‘‘वह तो मैं ही उसे रोके हुए हूं बेटा. फिर उस पर ऐसी कोई बड़ी जिम्मेदारी अभी नहीं है. सो वह हमारे यहां ही रह लेगी.’’

‘‘लेकिन हम उन की जिम्मेदारी कब तक उठाएंगे? उन के अपने बेटाबहू हैं. उन्हें उन के पास ही रहना चाहिए. फिर वह यहां तरीके से रहतीं तो कोई बात नहीं थी पर वह तो हमेशा आप की बहू ममता पर रोब गांठती रहती हैं.’’

मुन्ना के शब्दों ने ही नहीं उस के स्वर ने भी उन्हें आहत कर दिया था. वह जानते थे कि त्रिवेणी पर लगाया गया आरोप झूठा है. आखिर त्रिवेणी उन की एकमात्र बहन है. वह उसे बचपन से जानते हैं. ममता उस के विषय में ऐसी बात कह ही नहीं सकती थी. लेकिन वह चाह कर भी मुन्ना से अपना विरोध प्रकट नहीं कर सके थे. वह जानते थे कि मुन्ना और बहू अब त्रिवेणी को घर में शांति से नहीं रहने देंगे. उसी को ले कर हर समय कलह मची रहेगी. बातबात पर त्रिवेणी को अपमानित किया जाता रहेगा. वह यह ज्यादती सहन नहीं कर सकेंगे. इसीलिए उन्होंने त्रिवेणी को भेज दिया था.

त्रिवेणी चली गई थी. जिस दिन वह गई, उस दिन उन्हें ऐसा लगा मानो इंदू की मौत अभीअभी हुई हो. कितने ही दिनों तक वह अनमने से रहे थे. अब उन्हें पूछने वाला कोई न था. सुबह की चाय के लिए भी तरस जाते थे. वह बारबार बच्चों द्वारा बहू के पास संदेश भेजते रहते, पर वह संदेश अकसर बीच में ही गुम हो जाता था. थक कर वह खुद रसोईघर के द्वार पर जा कर दस्तक देते. जवाब में बहू का तीखा स्वर सुनाई देता, ‘‘आप को चाय नहीं मिली? अंजू से कहा तो था मैं ने. ये बच्चे ऐसे बेहूदे हो गए हैं कि बस... अकेला आदमी आखिर क्याक्या करे? मैं तो काम करकर के मर जाऊंगी, तब ही शांति मिलेगी सब को.’’

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