‘‘धीरे बोलो, सुन लेगी,’’ दीपा ने टोका.
‘‘आओ संजना, आओ, बैठो, कैसा चल रहा है?’’
‘‘थोड़ी सी कौपियां बच गई हैं जांचने को. उन्हीं को पूरा करने में लगी हूं.’’
‘‘अनुराधा को दे दी होतीं. आखिर वह करती ही क्या है?’’
‘‘यह तो आप जानें या वह,’’ संजना मुंह बना कर बोली, ‘‘मैं इतना जानती हूं कि वह सिर्फ नाम की डांस टीचर है. क्या आता है उसे? फिल्मी लटकोंझटकों की नकल मार कर कोई डांस टीचर्स नहीं बन सकता.’’
‘‘एक बार कह कर तो देखो.’’
‘‘पिछली दफे आप के सामने ही तो कहा था. साफ इनकार कर दिया था.’’
आलोकनाथ संजना को नाराज नहीं कर सकते थे. इसलिए किंचित नाराज स्वर में बोले, ‘‘अगले सैशन से उन की छुट्टी तय.’’ संजना का सिर गर्व से तन गया.
‘‘और हां, मैं एक बात कहना भूल गया. तुम्हारे लिए खुशखबरी है. तुम्हारे काम से मैं और मैनेजमैंट बहुत खुश हैं. लिहाजा, सर्वसम्मति से तुम्हें कौर्डिनेटर बनाया जाता है.’’
यह सुन कर संजना खुशी से चूर थी. वह समझ नहीं पा रही थी कि आखिर आलोक सर के इस एहसान का बदला कैसे चुकाए?
‘‘मैं आप की शुक्रगुजार हूं,’’ उस के मुंह से इतना ही निकला.
‘‘इस में शुक्रिया की क्या बात है. यह पद तुम अपनी काबिलीयत से पा रही हो. तुम्हारी सैलेरी दोगुनी हो गई है.’’
आलोकनाथ ने तो संजना को हर खुशी से नवाजा. अब बारी थी संजना की. स्कूल में सन्नाटा था. पिं्रसिपलरूम हम टीचर्स के कौमन रूम से थोड़ी दूरी पर था.
‘वहां क्यों बैठी हो. मेरे पास आओ,’ आलोक सर फुसफुसाए.
संजना उन की बगलगीर हो गई. वे उस के कंधे पर हाथ रख कर मुसकराते हुए बातें करने लगे. मुझे नए महीने के उपस्थिति रजिस्टर पर पिं्रसिपल सर के दस्तख्त कराने थे. मैं ने सोचा लगेहाथ यह भी निबटा दिया जाए. रजिस्टर ले कर उन के केबिन के पास पहुंची, तो अंदर संजना और आलोक सर की फुसफुसाहट मेरे कानों में पड़ी. एक छोेटे से झरोखे से झांक कर देखा. अंदर जो कुछ हो रहा था उसे देख कर मैं शर्म से गड़ गई. आलोक सर संजना को चूम रहे थे. मैं घबरा कर वापस कौमनरूम में आ गई. वह दृश्य मेरी आंखों के सामने तैरता रहा. मैं ने दीपा को सारा किस्सा बता दिया.