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‘‘क्या? ये सब, मतलब ये सारा सामान तुम भैरवी को देने के लिए लाई हो?’’ मम्मी की आंखें आश्चर्य से फटी रह गईं

‘‘हां, मम्मी, भैरवी की पहली संतान को आशीर्वाद देने जा रहे हैं हम लोग,’’  मैं ने कहा.

‘‘अरे, तू होश में तो है? इतने सारे कपड़े, 5 साडि़यां, रजाईगद्दा, चादर, खिलौने, क्या तू ने उस का पूरा ठेका ले रखा है? और, जरा सा बच्चा सोने की चेन का क्या करेगा?’’ फैली नजरों से मम्मी मु झे देख रही थीं.

‘‘मम्मी, कैसी बात कर रही हैं आप? भैरवी की यह पहली संतान है,’’ मैं ने कहा.

‘‘कैसा क्या? तेरे भले की बात कर रही हूं. पहला बच्चा है तो क्या, कोई अपना घर उजाड़ कर सामान देता है किसी को?’’ मम्मी ने कहा.

‘‘छोडि़ए मम्मी, जो आ गया सो आ गया,’’ कह कर मैं ने इस अप्रिय प्रसंग को खत्म करना चाहा.

‘‘छोडि़ए कैसे? तुम फुजूलखर्ची छोड़ो और ऐसा करो, बहुत मन है तो बच्चे के कपड़ों के साथ एक साड़ी और मिठाई दे दो, बाकी सब वापस रख दो. हो जाएगा शगुन,’’ कहते हुए मम्मी ने आदतन अपना हुक्म सुना दिया.

‘‘मम्मी, ग्लोरी के पहली बेटी होने पर लगभग इतना ही सामान भिजवाया था आप ने. तब मैं ट्रेनिंग में ही थी, पैसों की भी तंगी थी, परंतु उस समय आप को यह सब फुजूलखर्ची नहीं लगी थी,’’ मु झे अब गुस्सा आने लगा था.

‘‘ग्लोरी तेरी सगी बहन है, उसे दिया तो क्या, सभी को बांटती फिरोगी,’’ मम्मी बोलीं.

‘‘भैरवी कोई गैर नहीं, मेरी सगी ननद है. जैसी ग्लोरी वैसी भैरवी,’’ मैं ने कहा.

‘‘बहन और ननद में कोई फर्क नहीं है क्या?’’ मम्मी भी गुस्से में आ गई थीं.

‘‘नहीं, कोई फर्क नहीं है. एक को मेरी मां ने जन्म दिया है तो दूसरी को मेरी सासुमां ने. एक ही प्यार का नाता है,’’ मैं बोली.

‘‘तेरा तो दिमाग खराब हो गया है, कोई फर्क नहीं दिखता,’’ मम्मी खी झ उठी थीं.

‘‘वैसे, फर्क तो है, मम्मी,’’ कुछ सोचती हुई मैं बोल पड़ी.

‘‘चलो, तुम्हारी सम झ में आया तो,’’ मम्मी खुश हो गईं.

‘‘भावना और परवरिश में फर्क है…’’ अभी मैं ने अपनी बात स्पष्ट करनी शुरू ही की थी कि रामू अदब से सामने आ कर खड़ा हो गया और बोला, ‘‘मैडम, खाना लग गया है.’’

‘‘ठीक है, चलिए मम्मी, खाना खाते हैं. आप तो सुबह की निकली होंगी,’’ मैं उठते हुए बोली. इस अप्रिय संवाद के खत्म होने से मैं ने चैन की सांस ली.

‘‘हां, सुबह 6 बजे ही हम लोग कानपुर से चल दिए थे. सीधे मेरठ पहुंचे. 2 घंटे वहां लगे. 11 बजे मेरठ से चले और सीधे  झांसी,’’ कहते हुए मम्मी भी उठ खड़ी हुईं.

 

खाना खा कर हम दोनों पलंग पर लेट गईं. घरपरिवार का हालचाल बतातेबताते मम्मी अचानक बोल पड़ीं, ‘‘अरे  गरिमा, जो सामान वापस करना है, अपने ड्राइवर को बोल दो, वापस कर आएगा, नहीं तो तुम लोग 3 दिन के लिए चले जाओगे. इस दौरान शौपकीपर का सामान क्या पता बिक ही जाए. जब लेना नहीं है तो बेचारे का नुकसान क्यों कराया जाए.’’

‘‘कौन सा सामान?’’ कुछ सम झ नहीं सकी, लिहाजा मैं बोल पड़ी.

‘‘अरे, वही जो तुम भैरवी के लिए उठा लाई थीं,’’ मम्मी ने कहा.

‘‘मम्मी, क्यों वही बात फिर से शुरू कर रही हैं?’’ मेरे लहजे में शिकायत थी.

‘‘मतलब, तुम सामान वापस नहीं कर रही हो?’’ मम्मी अविश्वास से मेरी तरफ देख रही थीं.

‘‘नहीं, मम्मी, आप भला नहीं कर रही हैं. आप हमें स्वार्थी बनाने का प्रयास कर रही हैं,’’ मैं स्पष्ट शब्दों में बोल उठी.

‘‘गरिमा?’’ गुस्से से मम्मी की आवाज कांप गई.

मैं ने मम्मी का हाथ अपने हाथ में ले लिया और धीरे से बोली, ‘‘मम्मी, मु झे मालूम है मेरी बात आप को ठेस पहुंचा रही है. इस विषय को मैं ने हमेशा टालना चाहा है. जब तक बात मेरे तक थी, मैं ने कोई विरोध नहीं किया, अपनेआप में सिमटती चली गई. लेकिन आप की दखल का असर अब हमारी गृहस्थी में भी होने लगा है. ग्लोरी का बिखरता दांपत्य आप की ऐसी सीखों का ही नतीजा है. अभी भी समय है मम्मी, खुद को रोक लीजिए. आप ने तो समाज सुधार का बीड़ा उठा रखा है. फिर अपनी बेटियों का घर क्यों…’’

 

मेरी बात बीच में काटती हुई मम्मी मेरा हाथ  झटक कर बैठ गईं और गुस्से से बोलीं, ‘‘तुम कहना क्या चाहती हो? मेरी फूल जैसी ग्लोरी को वे लोग सुखी नहीं रख रहे हैं और उस के

लिए दोषी मैं हूं? मैं तुम लोगों को स्वार्थी बना रही हूं? मैं तुम लोगों का भला नहीं चाहती? और तेरे साथ मैं ने क्या किया जो तू चली गई? पढ़ालिखा कर प्रशासनिक अधिकारी बना दिया, यही न? आज सीडीओ बनी सब पर रोब  झाड़ती घूम रही है. हमेशा की डरीसहमी रहने वाली लड़की, आज मां से ही जवाबसवाल कर रही है,’’ मम्मी की आंखें अंगारे बरसा रही थीं.

‘‘मम्मी, प्लीज, शांत हो कर मेरी बात सुनिए,’’ मैं ने नरम पड़ते हुए कहा.

‘‘अच्छा, अभी भी सुनने को कुछ रह गया है क्या?’’  मम्मी  झल्लाईं.

‘‘प्लीज मम्मी, मु झे मालूम है आप हमारा बुरा नहीं चाहतीं. अपनी लाड़ली ग्लोरी का बुरा तो आप सोच भी नहीं सकतीं किंतु अनजाने में ही आप भले के चक्कर में ऐसा कुछ कर जाती हैं जो आप के न चाहते हुए भी आप की संतान का बुरा कर बैठता है. मेरे और ग्लोरी के सुखी भविष्य के लिए मेरी बात सुन लीजिए,’’ मैं ने उन्हें सम झाते हुए कहा.

शायद मेरी बात मम्मी को कुछ सम झ आ रही थी या फिर ग्लोरी की बिखरती गृहस्थी को संवारने की इच्छा से मम्मी मेरी बात सुनने को तैयार हो गई थीं, मैं सम झ नहीं पा रही थी कि उन नजरों में क्या था.

‘‘क्या कहना चाहती हो, बोलो,’’ मम्मी के सपाट शब्दों में कोई भाव नहीं था.

मैं दुविधा में थी. मम्मी अपलक मेरी ओर देख रही थीं. थोड़ी देर हमारे बीच खामोशी पसरी रही, फिर मैं ने बोलना शुरू किया, ‘‘मेरी बात का गलत अर्थ मत लगाइएगा, मम्मी.’’

‘‘हां, बोलो,’’ मम्मी की तटस्थता बरकरार थी.

‘‘मम्मी, अभी आप ने मु झे बहन और ननद में फर्क करने की सलाह दी थी जिसे मैं ने मानने से मना कर दिया, क्योंकि निश्च्छल और निस्वार्थ प्यार क्या होता है, मैं ने अपनी शादी के बाद ही जाना है. पति का प्यार ही नहीं, मां का प्यार, बहन का प्यार…’’ मैं कहती चली गई.

‘‘अरे, हम प्यार नहीं करते क्या?’’ मम्मी की तटस्थता टूटी. उन के स्वर में आश्चर्य था.

‘‘जरूर करती हैं, लेकिन ग्लोरी और भैया से कम. मैं बचपन से ही काली व मोटी जो रही हूं,’’ मैं ने कहा.

‘‘हां, लेकिन आप तीनों के व्यवहार से मेरी कुरुपता मु झ पर हावी होती गई. नतीजतन, मैं हीनभावना से घिरती गई. किसी से बात करने का आत्मविश्वास मु झ में नहीं रहा,’’ मैं ने मम्मी से अपने मन की हकीकत बयान की.

‘‘अरे, कैसी बात कर रही हो? ऐसा कुछ कभी नहीं हुआ,’’  मम्मी बोलीं.

 

लेकिन अतीत की कसैली यादें मु झ पर हावी थीं. मैं अपनी ही रौ में बोले जा रही थी, ‘‘मम्मी, याद है मैं जब हाईस्कूल में थी, स्कूल में हमारी फेयरवैल पार्टी थी. मैं बहुत उत्साहित थी. आप की एक साड़ी मैं ने उस खास मौके पर पहनने के लिए कई दिनों पहले से अलग निकाल रखी थी. उस दिन जब मैं ने उसे पहनने के लिए निकाला तो ग्लोरी ने टोका था, ‘दीदी, तुम दूसरी साड़ी पहन लो. यह साड़ी मैं परसों पिकनिक में पहन कर जाऊंगी.’

‘नहीं, आज तो मैं यही साड़ी पहनूंगी. इतने दिनों से मैं ने इसे तैयार कर के रखा है. तुम्हें पहनना है तो तुम भी पहन लेना. मैं इसे गंदा नहीं करूंगी,’  मैं ने भी जिद की थी.

‘दीदी, तुम जो कुछ भी पहनती हो, कोई भी रंग तुम्हारे ऊपर खिलता तो है नहीं, बेकार की जिद मत करो,’ कहते हुए ग्लोरी ने साड़ी मेरे हाथ से ले ली थी. मैं खड़ी की खड़ी रह गई थी.

‘‘मम्मी, आप के सामने ग्लोरी मु झे इस तरह अप्रिय शब्दों में अपमानित कर के चली गई और आप कुछ नहीं बोली थीं.’’

‘‘अरे, तुम इतनी छोटी सी बात अब तक दिल से लगाए बैठी हो, गरिमा?’’ मम्मी अचंभित सी मु झे देख रही थीं.

‘‘यह आप के लिए छोटी घटना होगी मम्मी, लेकिन उस दिन के बाद से मैं ने कभी भी ग्लोरी और भैया की बराबरी नहीं की. मैं सब से कटती चली गई. अपने रंगरूप के कारण जो आत्मविश्वास मैं ने खो दिया था वह मु झे वापस मिला अपनी शादी के बाद.

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