“बढ़िया है, लगे रहो मुन्ना भाई,” दिव्या बोल ही रही थी कि उस के घर से फोन आ गया. घबराई हुई सी उस की मां कहने लगी कि अचानक से उस के पापा की तबीयत बिगड़ गई. उन्हें अस्पताल में भरती करवाना पड़ा.
“क्या...पर यों अचानक. हां, हां, मैं पैसों का इंतजाम कर के जल्द ही भेजती हूं. आप चिंता मत करो,” दिव्या फोन रख कर सिर पकड़ कर बैठ गई कि अचानक से इतने पैसे कहां से लाएगी वह?
“तू चिंता मत कर. हम हम कुछ करते हैं,” मनीषा ने उसे ढाढ़स बंधाते हुए कहा कि वह भाविन से बात करती है. लेकिन आकांक्षा कहने लगी कि नहीं, इस से तो अच्छा होगा कि हम जो मकान मालिक को देने के लिए पैसे रखे हैं वही दिव्या को दे दें क्योंकि अभी उन पैसों को इसे सब से ज्यादा जरूरत है. कह देंगे मकान मालिक से हम उन्हें 2 महीने का किराया एकसाथ दे देंगे.
“हां, यह सही रहेगा,” किंजल बोली. तुरतफुरत में दिव्या ने वह पैसे अपने मां को भेज दिए और छुट्टी ले कर वह अपने घर मोरबी के लिए रवाना हो गई. लेकिन अब इधर किंजल के सिर पर मुसीबत आन पड़ी. उस की मां उस के लिए रिश्ता देख रही थी. एक जगह उस की शादी की बात भी चल रही है. लेकिन लड़का पहले किंजल से मिलना चाहता है, फिर ही शादी के लिए हां करेगा. इसलिए उस की मां का हुक्म था कि किंजल जितनी जल्दी हो सके, छुट्टी ले कर घर आ जाए. किंजल के मांपापा पोरबंदर में रहते हैं. वहां उन का अपना फैमिली बिजनैस है.
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