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“हाय, ब्रो, क्या हालचाल,”  किंजल ने मनीषा की पीठ पर हाथ मार कर पूछा, तो उस ने मुंह बना कर ‘पिच’ कर दिया. “क्या हुआ, यह समोसे की तरह मुंह क्यों बना रखा है, आज फिर से तेरा भाविन से झगड़ा हुआ क्या?“

“छोड़ न, उस की तो बात ही नहीं करनी मुझे.  स्टुपिड कहीं का. अरे  भाई,  मेरी ज़िंदगी है जैसे चाहे जिऊं.  उस की मम्मी  को क्या करना है.  बड़ी आई बोलने,”  यह बोल कर मनीषा ने कुशन उठा कर जमीन पर दे मारा.

“तू भी न, अब जानती तो है उन्हें, फिर उन की बातों को दिल से क्या लगाना. छोड़, जाने दे, तू अपना मूड मत खराब कर.  देख, भाविन के कितने मिस्डकौल हैं.  एक बार बात तो कर ले उस से.” लेकिन मनीषा  ने यह कह कर फोन उस तरफ फेंक दिया कि उसे उस से बात ही नहीं करनी अब.

“अच्छा ठीक है मत कर. पर कौफी तो पिएगी न मेरी पुच्चू,” किंजल ने प्यारा सा मुंह बनाया,  “छोटीछोटी बातों पर डिप्रैस हो जाती है पगली कहीं की.” लेकिन मनीषा  कहने लगी कि उसे काउफी नहीं पीनी.  वैसे भी, वजन कम नहीं हो रहा.

“अरे बुद्धू,” वह हंसी, “एक कप कौफी पीने से क्या तेरा वजन बढ़ जाना है.  चल, मैं तेरे लिए स्पैशल कौफी बना कर लाती हूं.” कौफी बन ही रही थी कि तब तक आकांक्षा भी आ गई.  हाथ का बैग एक तरफ फेंक वह निढाल बिछावन पर लुढ़क गई. “अब तुझे क्या हुआ?” किंजल  ने पूछा.

“कुछ नहीं यार, जिस जौब के लिए अप्लाई किया था, उस में भी नहीं हुआ मेरा.  अब क्या बोलूंगी मांपापा से. वे तो कहेंगे यहां चली आओ.  बेकार में 2 जगह पैसे खर्च हो रहे हैं.  सही भी तो है.  लेकिन वहां जा कर भी क्या होगा, बताओ न? नातेरिश्तेदार मेरे मांपापा के पीछे पड़ जाएंगे कि आकांक्षा की शादी कब कर रहे हो? कोई लड़कावड़का देखा या नहीं? अरे, लड़की तो पराया धन होती है, जितनी जल्दी अपने घर चली जाए, अच्छा… वगैरहवगैरह बोल कर मेरा दिमाग खराब कर देंगे.  और तो और, मेरे घर रिश्ता ले कर भी पहुंच जाएंगे. क्या करूं, बता न. मुझे तो कुछ समझ ही नहीं आ रहा है,” आकांक्षा   ने अपना सिर पकड़ लिया.

“अरे, तो इस में चिंता करने वाली क्या बात है. तू मेहनत तो कर ही रही है, तो आज न कल जौब तो लगनी ही है.  सब ठीक हो जाएगा, ले, कौफी पी.  और तू प्राइवेट जौब ढूंढने के साथसाथ सरकारी नौकरी की भी तैयारी कर रही है, तो फिर इतना टैंशन मत ले, हो जाएगा कहीं न कहीं,” किंजल ने ढाढ़स बंधाया.

लेकिन आकांक्षा कहने लगी कि 2 साल से वह जौब के लिए ट्राय कर रही है, पर कहीं हो नहीं पा रहा है.  उस के मांपापा भी कब तक उस का खर्चा उठाते रहेंगे.  छोटी बहन है, उस का भी इस साल मैडिकल में एडमिशन करवाना है.

“हां, तो सब हो जाएगा. तुम्हारे मांपापा ने कभी कहा क्या कि वे अब तुम्हारा खर्चा नहीं उठा सकते इसलिए जाओ कहीं नौकरी ढूंढ लो? बल्कि वे तो तुम्हारा कितना सपोर्ट करते हैं.  इसलिए चिल्ल कर, समझी और कौफी का मजा ले.”तीनों कौफी पी ही रही थीं कि दिव्या भी आ गई. “यह लो, दिव्या मैडम भी आ गईं.  आज तुम्हारा दिन कैसा गया,” किंजल  बोली तो दिव्या ने आंख चमकाया कि यह कैसा सवाल है. दिन तो बढ़िया ही जाता है.  “अरे, मेरे कहने का मतलब था कि औफिस में ज्यादा काम तो नहीं था?”

“अब काम नहीं होगा, तो पैसे किस बात के देंगे और पैसे नहीं देंगे, तो घरपरिवार कैसे चलेगा, बता?” बोल कर दिव्या हंसी, तो किंजल  भी खिलखिला उठी.   लेकिन आकांक्षा और मनीषा  का लटका हुआ मुंह देख कर वह बोली, “इन दोनों के मुंह पर बारह क्यों बजे हैं? सब ठीक तो है?”

इस पर किंजल ने बड़ी वाली हांफी लेते हुए कहा कि वही, अपनी डफली अपना राग…मनीषा का अपने बौयफ्रैंड से झगड़ा हो गया और आकांक्षा को जौब न मिलने की टैंशन. “यह तो पागल है. बेवकूफ कहीं की. अरे, जब तेरे मांपापा तेरी ज़िम्मेदारी उठा ही रहे हैं, तो चिल्ल कर न. इतनी क्या टैंशन है तुझे? और कौन सी जौब लग जाने के बाद तुझे राज सिंहासन मिल जाना है. और तू…” मनीषा की तरफ देख कर वह बोली, “सुबह उठ कर साइकिल चलाया कर मोटी, वरना तेरा यह पेट…. कार के टायर से ट्रक का टायर बनते देर नहीं लगेगी.” यह बोल कर दिव्या हंसी तो आकांक्षा और किंजल भी ठहाके लगाने लगीं.

“हां, हंसो, खूब ठहाके मार कर हंसो,”  मनीषा गुस्से से गुर्राई,  “बेशर्मों, यहां मैं टैंशन में हूं और तुम तीनों को हंसी आ रही है? वह मेरी होने वाली सास, भाविन की मम्मी  कहती है, कम खाया करो.  अब क्या मैं उन के कहने पर खाऊंपिऊं?  इस बार मैं भी सुना आई कि मैं जैसी हूं, ठीक हूं.  तो भाविन को बुरा लग गया.  मेरी बला से बुरा लगा तो,”  बोल कर मनीषा ने मुंह बिचकाया तो तीनों हंस पड़ीं.  वे बात कर ही रही थीं कि भाविन का फोन आ गया.  जाने उस ने उधर से क्या कहा कि मनीषा एकदम से चीख पड़ी और फोन पटक दिया.

किंजल ने फोन उठाया तो भाविन कहने लगा कि वह उस से बस इतना कह रहा था कि एक बार मम्मी  से सौरी बोल देने में क्या हर्ज़ है? और उसी बात पर वह भड़क गई. बेचारा, भाविन 2 पाटों के बीच में पिस रहा था.  न तो वह मनीषा को छोड़ सकता था और न ही अपनी मम्मी  से बहस लगा सकता था.

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