कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

बेटा बेटी को बराबर मानने वाले सुकांत और निधि दंपती ने अपने तीनों बच्चों उन्नति, काव्या और सुरम्य में कभी कोई फर्क नहीं रखा. एकसमान परवरिश की. यही कारण था जब बड़ी बेटी उन्नति ने डैंटल कालेज में प्रवेश लेने की इच्छा जाहिर की तो…

‘‘पापा ऐश्वर्या डैंटल कोर्स करने के लिए चीन जा रही है. मैं भी जाना चाहती हूं. मुझे भी डैंटिस्ट ही बनना है.’’

‘‘तो बाहर जाने की क्या जरूरत है? डैंटल कोर्स भारत में भी तो होते हैं.’’

‘‘पापा, वहां डाइरैक्ट ऐडमिशन दे रहे हैं 12वीं कक्षा के मार्क्स पर… यहां कोचिंग लूं, फिर टैस्ट दूं. 1-2 साल यों ही चले जाएंगे,’’ उन्नति बोली.

‘‘पर बेटा…’’

‘‘परवर कुछ नहीं पापा. आप ऐश्वर्या के पापा से बात कर लीजिए. मैं उन का नंबर मिला देती हूं… उन्हें सब पता है… वे अपने काम के सिलसिले में अकसर वहां जाते रहते हैं.’’

सुकांत ने बात की. फीस बहुत ज्यादा थी. अत: वे सोच में पड़ गए.

‘‘ऐजुकेशन लोन भी मिलता है जी आजकल बच्चों को विदेश में पढ़ने के लिए… पढ़ने में भी ठीकठाक है… पढ़ लेगी तो दांतों की डाक्टर बन जाएगी,’’ निधि भी किचन से हाथ पोंछते हुए उन के पास आ गई थीं.

‘‘पर पहले पता करने दो ठीक से कि वह मान्यताप्राप्त है भी या नहीं.’’

‘‘है न मां. बस वापस आ कर यहां एक परीक्षा देनी पड़ती है एमसीआई की और प्रमाणपत्र मिल जाता है. पापा, अगर मेरी जगह सुरम्य होता तो आप जरूर भेज देते.’’

‘‘नहीं ऐसा बिलकुल नहीं है. तुम ने ऐसा क्यों सोचा? क्या तुम भाईबहनों में मैं ने कभी कोई फर्क किया?’’ सुकांत ने उस के गालों पर प्यार से थपकी दी.

बैंक में कैशियर ही तो थे सुकांत. निधि स्कूल में टीचर थीं. दोनों के वेतन से घर बस ठीकठाक चल रहा था. कुछ ज्यादा जमा नहीं कर सके थे दोनों. सुकांत की पैतृक संपत्ति भी झगड़े में फंसी थी. बरसों से मुकदमे में पैसा अलग लग रहा था. हां, निधि को मायके से जरूर कुछ संपत्ति का अपना हिस्सा मिला था, जिस से भविष्य में बच्चों की शादी और अपना मकान बनाने की सोच रहे थे.

‘‘मकान तो बनता रहेगा निधि, शादियां भी होती रहेंगी… पहले बच्चे लायक बन जाएं तो यह सब से बड़ी बात होगी… है न?’’ कह सुकांत ने सहमति चाही थी, फिर खुद ही बोले, ‘‘हो सकता है हम मुकदमा जीत जाएं… तब तो पैसों की कोई कमी नहीं रहेगी.’’

‘‘हां, ठीक तो कह रहे हैं. आजकल बहुएं भी लोग कामकाजी ही लाना ज्यादा पसंद करने लगे हैं. बढि़या प्रोफैशनल कोर्स कर लेगी तो घरवर भी बहुत अच्छा व आसानी से मिल जाएगा,’’ निधि ने अपनी सहमति जताई.

‘‘जमा राशि आड़े वक्त के लिए पड़ी रहेगी… कोई ऐजुकेशन लोन ही ले लेते हैं. वही ठीक रहेगा… पता करता हूं डिटेल… इस के जौब में आने के बाद ही किस्तें जानी शुरू होंगी.’’

सुकांत ने पता किया और फिर सारी प्रक्रिया शुरू हो गई. उन्नति पढ़ाई के लिए विदेश चली गई. दूसरी बेटी काव्या के अंदर भी विदेश में पढ़ाई करने की चाह पैदा हो गई. 12वीं कक्षा के बाद उस ने लंदन से बीबीए करने की जिद पकड़ ली.

‘‘पापा, दीदी को तो आप ने विदेश भेज दिया मुझे भी लंदन से पढ़ाई करनी है… पापा प्लीज पता कीजिए न.’’

सुकांत और निधि ने सारी तहकीकात कर काव्या को भी पढ़ाई के लिए लंदन भेज दिया.

अब रह गया था सब से छोटा बेटा सुरम्य. पढ़ने में वह भी अच्छा था. वह भी डाक्टर बनना चाहता था. मगर घर का खर्च देख कर उस का खयाल बदलने लगा कि मातापिता कहां तक करेंगे… साल 6 महीने बाद पीएमटी परीक्षा में सफल भी हुआ तो 4 साल एमबीबीएस की पढ़ाई. फिर इंटर्नशिप. उस के बाद एमडी या एमएस उस के बिना तो डाक्टरी का कोई मतलब ही नहीं. फिर अब मम्मीपापा रिटायर भी होने वाले हैं… कब कमा पाऊंगा, कब उन की मदद कर पाऊंगा… 2 लोन पहले ही उन के सिर पर हैं.

मुझे कुछ जल्दी पढ़ाई कर के पैसा कमाना है. फिर उस ने अपना स्ट्रीम ही कौमर्स कर लिया. 12वीं कक्षा के बाद उस ने सीए की प्रवेश परीक्षा पास कर ली. स्टूडैंट लोन ले कर उस ने अपनी सीए की पढ़ाई शुरू कर दी. दिन में पढ़ाई करना और रात में काल सैंटर में जौब करने लगा. सुकांत और निधि थोड़े परेशान अवश्य थे, पर मन में कहीं यह संतोष था कि बच्चे काबिल बन कर अपने पैरों पर खड़े हो इज्जत और शान की जिंदगी जीएंगे, इस से बड़ी और क्या बात होगी उन के लिए.

सुकांत रिटायर हो कर किराए के मकान में आ गए थे.

‘‘और क्या जी हम नहीं बनवा सके घर तो क्या बच्चे तो अपना घर बना कर ठाठ से रहेंगे,’’ एक दिन निधि बोलीं.

लेखक- Dr. Neerja Srivastava

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...