माही को सिंगापुर से आए हुए 15 दिन हो गए थे. शुरू के कुछ दिन माही को लग रहा था कि कर्ण उस के पीछेपीछे भागा हुआ आएगा. मगर जब 5 दिन बाद भी कर्ण का न कोई मैसेज आया और न ही फोन तो माही का माथा ठनका.
माही ने कर्ण को मैसेज किया,'तुम्हें क्या, मेरे होने या न होने से कोई फर्क नही पड़ता है...'
जवाब में कर्ण का मैसेज आया,'अपनी मरजी से गई हो अपनी मरजी से ही आना होगा...'
माही गुस्से में बिलबिला उठी. गुस्से में उस ने कर्ण को फोन लगाया,"तुम तो कहते थे कि मेरे बिना तूम जी नहीं सकते हो... मैं 15 दिनों से अपने घर पर हूं मगर तुम ने तो मुझे फोन ही नहीं किया."
कर्ण गुस्से में बोला," तुम मुझे अकेला छोड़ कर अपने पापा के घर आ गई थी। अगर तुम मुंबई के बजाय गाजियाबाद आतीं तो मैं तुम्हारी बात समझ सकता था। मगर तुम ने अपने घर की बात अब अपने मम्मीपापा के घर तक पहुंचा दी है। तुम ने तो अपने सात फेरों का जरा भी मान नहीं रखा है। आज भी तुम्हारे लिए अपने घर का मतलब तुम्हारे मम्मीपापा का घर ही है..."
माही के अहंकार को ठेस पहुंच गई. उस ने भी गुस्से में कह दिया,"ठीक है, ऐसी शादी से तो अच्छा अलग हो
जाना है."
कर्ण पहले ही अपनी नईनवेली पत्नी के नखरों से परेशान था. इसलिए फोन रखते हुए बोला,"जैसी तुम्हारी मरजी."
माही का मन कसैला हो उठा. मतलब कर्ण उन दोनों के बीच हुई हर छोटीबड़ी बात को अपने दिल से लगा
कर रखता है. माही गुस्से में कर्ण को कौल करने लगी. मगर कर्ण ने कौल नहीं उठाया. कुछ देर बाद माही ने गुस्से में कर्ण को ब्लौक कर दिया था. अब कर्ण न उसे मैसेज कर पाएगा और न ही फोन.