दीपा बड़ी देर से अपनी भांजी रिंकू का इंतजार कर रही थी. पति सुशांत कंपनी के काम से चेन्नई गए हुए थे. रिंकू के मोबाइल पर उस ने बहुत बार ट्राई किया. रिंग पर रिंग जा रही थी पर रिंकू ने न फोन उठाया और न ही कौलबैक किया. उस के औफिस में भी कोई फोन नहीं उठ रहा था.

दीपा का मन आशंकाओं से घिरा जा रहा था. घर में 2 छोटे बच्चों को छोड़ कर इतने बड़े शहर में वह अपनी भांजी को ढूंढऩे आखिर कहां जाए. जवान भांजी के साथ कहीं कोई अनहोनी हो गई तो... इस शहर को रिंकू जानती ही कितना है. देवास जैसी छोटी जगह से चंद महीने पहले ही तो वह यहां पर रहने आई है. न तो दीपा सुशांत को फोन लगाना चाहती थी और न ही रिंकू के घर वालों को. दोनों ही दूसरे शहरों में बैठे हैं, बेवजह परेशान होंगे और इतनी दूर से कुछ कर भी नहीं पाएंगे.

दरअसल, आज रिंकू का बर्थडे भी था, इसलिए वह शाम को लकी बेकरी से उस का मनपसंद केक और एक सुंदर पर्स गिफ्ट के तौर पर ले कर आई थी. लेकिन अब साढ़े नौ बजने को थे. बच्चे भी अपना होमवर्क खत्म कर के केक कटने का इंतजार करतेकरते थक कर सो चुके थे. आखिरकार, हताश हो उस ने सुशांत को फोन लगाया. ‘‘अब बता रही हो मुझे?’’ छूटते ही सुशांत ने कहा.

‘‘क्या करती सुशांत, मुझे लगा वह आती ही होगी. मैं बेवजह तम्हें परेशान नहीं करना चाहती थी,’’ दीपा रोंआसी हो उठी.

‘‘चलो, परेशान मत हो, मैं उसे फोन लगाकर देखता हूं और दीदी से भी बात करता हूं,’’ कह कर सुशांत ने फोन रख दिया. बीतते हर पल के साथ दीपा की चिंता बढ़ती जा रही थी. लगता है रिंकू को अपने घर रख कर उस ने कोई गलत निर्णय ले लिया है.

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