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नई दिल्ली पहुंचने में 2 दिन और एक रात लगनी थी. गाड़ी की स्पीड अच्छी थी. तीनतीन घंटे कोई स्टेशन नहीं आता था. दूर की गाड़ियां हमेशा लेट हो जाती हैं. यह गाड़ी सुबह 4 बजे पहुंचनी थी पर 8 बजे पहुंची. शान ए पंजाब, जिस में मेरी अमृतसर जाने की सीट बुक थी, निकल चुकी थी. अमृतसर के लिए रिजर्वेशन करवाना जरूरी था. क्वार्टरमास्टर ने मुझ से हाथ मिलाया. मैं ने उन का धन्यवाद किया. उन की गाड़ी और उन के कुछ जवानों की गाड़ी शाम को थी. उन की रैजिमैंट के 2 जवान मेरे साथ जालंधर तक जाने थे. क्वार्टरमास्टर ने उन को आदेश दिया कि मेजर का ख़याल रखना. इन का सामान उठा लेना. यह न हो कि इन को कुली करना पड़े. मैं ने कहा, ‘नहीं क्वार्टरमास्टर साहब, सामान बहुत हलका है, मैं उठा लूंगा.’

गाड़ी 9 नंबर प्लेटफौर्म पर आई थी और एमसीओ 12 नंबर प्लेटफौर्म पर था. मैं ने एक जवान से कहा, ‘इस का रेलवे वारंट और अपना रेलवे वारंट ले कर चलो. एमसीओ में आगे की गाड़ी के लिए रिजर्वेशन करवा कर आते हैं.’

एमसीओ ने 11 बजे अमृतसर जाने वाली डीलक्स गाड़ी में 3 बर्थें रिजर्व कर दीं. 2 जालंधर के लिए, एक मेरी अमृतसर के लिए. गाड़ी 1 नंबर प्लेटफौर्म से चलनी थी. सामान में मेरा एक बिस्तरबंद था और बैग. बैग मैं ने उठा लिया और बिस्तरबंद एक जवान ने उठा लिया था.

अभी 9 बजे थे. गाड़ी आने में बहुत समय था. सामान 1 नंबर प्लेटफौर्म पर रख दिया. जवानों से मैं ने नाश्ते के लिए पूछा. वे कहने लगे, ‘नाश्ता हमारे पास है. आप को मैं अभी देता हूं.’ मैं ने कहा, ‘नहीं, आप करें. मैं नाश्ता रेलवे रैस्टोरैंट में जा कर करूंगा.’

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