लेखाबाली से अपने गांव छटी जाने के लिए 2 रास्ते थे. एक सिलापत्थर से नयूरंगापाड़ा और रंगिया होते हुए नयूबंगाई गांव से नई दिल्ली. नयूबंगाई गांव तक मीटरगेज थी, फिर वहीं से ब्रौडगेज से नई दिल्ली के लिए गाड़ी मिलती थी. इस में ज्यादा समय लगना था और गाड़ी भी 2 जगह बदलनी पड़ती थी. दूसरा रास्ता सुनहरी घाट से ब्रह्मपुत्र दरिया पार कर के डीब्रूगढ़ से सीधे नयूबंगाई गांव की ट्रेन पकड़ना. 2 जगह ट्रेन बदने के बजाय डीब्रूगढ़ से छटी जाना ठीक समझा. बारिश के दिनों में दरिया पार करना रिस्क था पर उस समय मैं ने यही ठीक समझा. वैसे भी, हम सैनिक हमेशा अपनी जान हथेली पर ले कर चलते हैं. अभी भी मौत के मुंह से बच कर आया था.
समय पर यूनिट की गाड़ी ने मुझे घाट पर पहुंचा दिया था. डीब्रूगढ़ से अभी फैरी नहीं आई थी. धारा के करंट के विपरीत चलने से आमतौर पर फैरी लेट हो जाती है. और लोग भी खड़े थे. बरसात शुरू हो गई थी. मैं ने बरसाती पहन कर छाता खोल लिया था. वहां खड़े लोगों ने भी छाते खोल लिए थे. फैरी वाले जवानों से पैसे नहीं लिया करते थे. इस के लिए असम और अरुणाचल प्रदेश की सरकारों के बीच कोई समझौता था.
फैरी आई और हम सब उस में बैठ गए. फैरी ने आधे घंटे में ही डीब्रूगढ़ घाट पहुंचा दिया था. वहां से रिकशा कर के स्टेशन. 2 बज गए थे. 4 बजे की ट्रेन थी. यूनिट से लाए लंच से पहले रेलवे वारंट तुड़वा कर रिजर्वेशन करवाना जरूरी था. रिजर्वेशन खिड़की पर गया तो बाबू ने कहा, ‘बर्थ नहीं है.’ ऐसे समय के लिए मैं हमेशा रम की 2.3 बोतलें ले कर चलता हूं. मैं ने बाबू को रम की बोतल दिखाई और रिजर्वेशन हो गई. रम की बोतल बहुत कारगर सिद्ध होती है. बड़ोंबड़ों के दिल डोल जाते हैं.
गाड़ी प्लेटफौर्म पर आई तो मैं अपनी बर्थ पर बिस्तर लगा कर लेट गया. नीचे की साइड बर्थ थी. लंच मैं ने प्लेटफौर्म पर ही कर लिया था. नयूबंगाई गांव तक कोई फिक्र नहीं थी. यह गाड़ी लिंक ट्रेन थी. जब तक यह गाड़ी नहीं पहुंचेगी तब नई दिल्ली की गाड़ी नहीं चलेगी. वहां से नई दिल्ली के लिए बर्थ मिलना बहुत मुश्किल होता है. मिलिटरी की मूवमैंट हमेशा रहती है. फिर भी आशा थी कि रम की बोतल दिखाने से शायद बर्थ मिल जाए.
दूसरे दिन 11 बजे गाड़ी नयूबंगाई गांव पहुंची. मैं ने बहुत कोशिश की कि मुझे नई दिल्ली के लिए बर्थ मिल जाए. रम की बातल भी दिखाई पर बर्थ न थी और न मिली. मेरे पास मिलिटरी कंपार्टमैंट में सफर करने के अलावा चारा नहीं था. मिलिटरी कंपार्टमैंट के बाहर 2 जवान मिलिटरी पुलिस के खड़े थे जो जवानों का आईकार्ड और लीव सर्टिफिकेट या मूवमैंट और्डर देख कर कंपार्टमैंट के भीतर जाने दे रहे थे. कंपार्टमैंट में जवान भेड़बकरियों की तरह भरे हुए थे. उस से भी बुरी हालत थी. यहां तक कि जवान वाशरूम के आगे भी बैठे हुए थे. आज की तरह औनलाइन रिजर्वेशन करने की व्यवस्था नहीं थी. कई बार प्लैंड छुट्टी में भी रिजर्वेशन नहीं मिलता था. एमसीओ को बहुत समय पहले लिखने पर भी. हां, जवान अधिक हों तो एक अलग बोगी लगाने की व्यवस्था हो जाती थी.
कुछ जवान डोगरा रैजिमैंट से थे. उन्होंने मुझे पहचान लिया. आलौंग में वे मुझ से सामान लेने आया करते थे. मैं रैजिमैंट में कंडेमनेशन बोर्ड में कंडम करने के लिए भी जाया करता था. ‘मेजर आगे आ जाओ’. सेना में एक हवलदार को सम्मान में मेजर कहने का रिवाज है. उन का क्वार्टरमास्टर भी सफर कर रहा था जो कंडेमनेशन बोर्ड में हमेशा मेरे साथ रहता था. उन्होंने मेरा सामान पकड़ कर ऊपरनीचे एडजस्ट कर दिया. मेरे लिए जहां सामान रखा जाता है, वह पूरी बर्थ खाली कर दी थी. मैं आराम से ऊपर बिस्तर लगा कर लेट गया.
एक जवान की पत्नी जो गर्भवती थी और पूरे दिनों पर थी. लगता था कहीं रास्ते में ही बच्चा न हो जाए. उस को 2 बर्थों के बीच जगह बना कर लेटा दिया गया था. वह जवान और उन की पत्नी बड़ी मजबूरी में सफर कर रहे थे. उन के पिता की डैथ हो गई थी. पीछे पत्नी को अकेले छोड़ कर घर नहीं जा सकता था. कुछ जवानों की औरतें उस का ख़याल रखने में व्यस्त थीं. देख कर बहुत अच्छा लगा कि जवानों की औरतें भी जवानों की तरह मोरचे पर हैं.
गाड़ी चलने तक जवान आते रहे. भीड़ के चलते वाशरूम जाना मुश्किल था. मुझे शूशू जोर से आ रहा था. लगता था, अभी निकल जाएगा. मैं ने नीचे बैठे क्वार्टरमास्टर से बात की. लड़ाकू फौज के जवान बहुत दिमागदार होते हैं. उन के पास हर समस्या का फौरी इलाज होता है. उन्होंने थोड़ी देर सोचा, फिर एक पुराना बड़ा बूट मेरी ओर बढ़ा दिया. कहा, ‘ मेजर, इस में कर लो, खिड़की से बाहर फेंक देंगे.’ मेरे चेहरे से उस ने समझ लिया था कि ऐसा करने में मैं झिझक रहा हूं. कहा, ‘मैं भी ऐसा ही करूंगा. सुबह अपने जवानों के साथ मिल कर वाशरूम जाने तक का रास्ता बनवा देंगे. वाशरूम तो सब को जाना है. पर इस समय बूट में शूशू करने के अलावा कोई चारा नहीं है.’ ये कह कर वे मुसकराए, फिर आगे बोले, ‘अगली बार जब कंडेमनेशन के लिए आओ तो बिना देखे मेरा बूट कंडेम कर देना.’
उस की बात पर मैं भी मुसकराया. मैं ने वैसा ही किया जैसे उन्होंने कहा था. मैं ने शूशू किया और उन्होंने बूट से शूशू खिड़की से फेंक कर बूट फिर मुझे पकड़ा दिया. रात को काम आएगा. रात में मैं ने ऐसा ही किया पर शूशू खिड़की के बाहर खुद फेंकता रहा लेकिन इतना ख़याल रखा कि किसी पर एक बूंद शशू की न पड़े.
सुबह मैं उठा तो सच में सबकुछ व्यवस्थित था. बोगी का एक दरवाजा पूरी तरह बंद कर के सारे बड़ेबड़े बक्से और रास्ते में पड़ा भारी सामान वहां लगवा दिया गया था. जो जवान वाशरूम के आगे बैठे थे, उन को सीटों पर एडजस्ट कर लिया गया था. गर्भवती महिला के लिए पूरी बर्थ खाली करवा कर वहां लिटा दिया था. वह आराम से सो रही थी. सबकुछ देख कर बहुत अच्छा लगा. हम सैनिक किस तरह हमेशा युद्धस्तर पर काम करते हैं.
मुझे क्वार्टरमास्टर ने सुबह 9 बजे उठाया, ‘मेजर, उठो, फ्रेश हो लो, फिर नाश्ता करते हैं.’
फ्रैश हो कर आया तो क्वार्टरमास्टर ने रैजीमैंट से लाया ब्रेकफास्ट दिया. मैं लेने में झिझक रहा था. सोचा था, कोई स्टेशन आएगा तो ब्रेकफास्ट कर लूंगा. ‘आप चिंता न करें, खाना कल सुबह तक का है.’