"लो, तुम्हारी गोरी बहू लाने की तमन्ना पूरी हो गई," मोबाइल पर आंखें गड़ाए दिनेश सोफे से उठ कर किचन में सब्जी काट रही शैलजा के पास जा पहुंचा.
दिनेश के शब्दों को सुन शैलजा के हाथ रुक गए. चेहरा उत्सुकता से स्वयं ही दिनेश के मोबाइल की ओर मुड़ गया.
"अरे वाह, यह तो सचमुच गोरी है," बेटे विशाल द्वारा व्हाट्सएप पर भेजी फोटो देख शैलजा आह्लादित हो उठी.
"होगी क्यों नहीं? गोरी जो है, मतलब विदेशी," ठहाका लगाते हुए दिनेश अपने शब्दों का उत्तर शैलजा की भावभंगिमाओं में खोजने लगा. शैलजा की आंखों में दिख रही चमक और मुखमंडल की आभा यह बताने के लिए पर्याप्त थी कि उसे विशाल की पसंद पर गर्व सा हो रहा था.
“मैं विशाल से कहना चाहती हूं कि जल्द से जल्द इस गौरवर्णा को मेरी बहू बनाने की तैयारी कर ले. अभी फोन कर लो न.”
“कुछ देर बाद करता हूं. आज संडे है तो वह घर पर ही होगा,” दिनेश उत्सुकता दबा मोबाइल पर अन्य मैसेज पढ़ने में व्यस्त हो गया.
शैलजा को आज अचानक जैसे पंख लग गए. धरती से आसमान में पहुंच गई हो वह. कुछ अकाल्पनिक सा घटित हो रहा है उस के साथ. फ्रांस में रहने वाले 32 वर्षीय बेटे विशाल के लिए कब से वह जीवनसंगिनी की तलाश में थी. कितनी लड़कियों के फोटो देखे थे उस ने. रिश्तेदारों और सहेलियों को बारबार याद दिलाती कि उसे एक मनभावन कन्या की तलाश है. विभिन्न मैरिज साइट्स के माध्यम से भी एक योग्य बहू पाने की उस की तलाश पूरी नहीं हो पा रही थी. कभी उसे लड़की पसंद नहीं आती, तो किसी का बायोडेटा या फोटो देख विशाल बात आगे बढ़ाने से मना कर देता. जहां सब की रजामंदी हुई वहां शैलजा और दिनेश गए भी, लेकिन निराशा हाथ लगी. आदर्श बहू के गुणों में उस का रंग गोरा होना शैलजा की प्राथमिकता थी. दिनेश से वह कहती कि जब किसी लड़की की प्रोफाइल ठीकठाक होती तो न जाने क्यों सांवला रंग चिढ़ाने आ जाता है, लेकिन उस ने भी ठान लिया है कि बहू तो गोरी ही लाएगी वह.