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फुटपाथ पर चलतेचलते वह सोचने लगा कि क्या सचमुच यह शकुन उस की वही शकुंतला थी, जिस ने उसे एक नमस्कार ही से मोहित कर डाला था, अपने मांबाप के ड्राइंगरूम में बैठेबैठे. वह शकुंतला और यह शकुन, दोनों में आधी शताब्दी का अंतर. कहां वह शर्मीली, कोमल, छुईमुई सी, उस की हर बात में हां में हां मिलाने वाली कमसिन बाला, और कहां यह चेहरे से ही सख्त दिखने वाली अधेड़, जो उसे सही आदमी बनाने पर तुली थी. वह, जिसे उस की अपनी मां भी सीधे रास्ते पर न ला पाई थी.
इन दोनों के अलावा उस की एक और शकुन थी, वह शकुन जिसे समय की गति नहीं छू  पाई थी. सुंदर की नजर में उस की चाल और रूपरंग वैसे के वैसे ही थे. उस के भरेभरे होंठों की लाली कायम थी. उस के रंगे केश अभी भी यौवन की चमक की याद दिलाते. फोन पर जब वह उस से बात करती तो उस के स्वर संतरे की खट्टीमीठी मिठास लिए होते. केवल उस का फिल्मी हीरोइन मुमताज जैसा तीखा, छोटी सी नाक इस बात का संकेत देता कि वह उन में से नहीं, जिन से कोई हीलहुज्जत करे और आसानी से बच निकले.

समय का चक्र भी कितना अजीब है, सुंदर को लगा. जब कोई आगे की सोचता है तो एक घंटा भी पहाड़ जैसा दिखता है, और जब पीछे मुड़ कर देखता है तो दसों साल पलक झपकते ही बीत गए प्रतीत होते हैं. वह पुरानी यादों में खो गया. शकुंतला से उस की शादी, पहले बेटी आरणा का जन्म और फिर बेटे अरुणजय का उम्र का वह कठिन दौर, जब ग्रहस्थी चलाने के लिए उन दोनों को छोटेबड़े समझौते करने पड़े. फिर देखते ही देखते बच्चे बड़े हो गए और उन्होंने दुनिया में अपनीअपनी जगह बना ली. बेटी आरणा की शादी एक वकील से हुई. वह आजकल स्वयं अपने स्टार्टअप में व्यस्त है. अरुणजय जेएनयू में फिलोसौफी पढ़ा रहा है और बीवीबच्चों के साथ वहीं रहता है...
सुंदर ने मार्केट के कोने में खड़े फ्रूट वाले से 4 केले खरीदे और वापस घर की ओर चल पड़ा. यादों के चक्रव्यूह ने उसे फिर से घेर लिया.

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