परम आज फिर से कैंटीन की खिड़की के पास बैठा यूनिवर्सिटी कैंपस को निहार रहा था. कैंटीन की गहमागहमी के बीच वह बिलकुल अकेला था. यों तो वह निर्विकार नजर आ रहा था पर उस के मस्तिष्क में विगत घटनाक्रम चलचित्र की तरह आजा रहे थे.

दिल्ली यूनिवर्सिटी के नौर्थ कैंपस की चहलपहल कैंपस वातावरण में नया उत्साह पैदा कर रही थी. हवा में हलकी ठंडक से शरीर में सिहरन सी दौड़ रही थी. दोस्तों के संग कैंटीन के बाहर खड़े हो कर आनेजाने वाले छात्रों को देख कर परम सोचने लगा कि टाइमपास का इस से अच्छा तरीका और क्या हो सकता है.

संकोची स्वभाव के परम ने जब पहली बार उसे देखा था तो एक अजीब सी झुरझुरी उस के शरीर में दौड़ गई थी. राखी, हां, यही नाम था उस का. वह भी तो उसी क्लास की छात्रा थी, जिस में परम पढ़ता था.

क्लास में कभी जब चाहेअनचाहे दोनों की निगाहें मिलतीं तो परम बेचैन हो उठता और चाहता कि वह उस के सामने खड़ा हो कर बस, उसे ही निहारता रहे.

कई बार परम ने राखी के समक्ष खुद की भावनाएं व्यक्त करने का प्रयास किया पर उस का संकोची स्वभाव आड़े आ जाता था. एक दिन संकोच को ताक पर रख कर उस ने उस का नाम मालूम होने पर भी अनजान बनते हुए पूछ लिया था, ‘‘क्या मैं आप का नाम जान सकता हूं?’’

हलकी मुसकराहट के साथ उस ने उत्तर दिया था, ‘‘राखी.’’

मात्र नाम जानने से ही परम को ऐसा लगा कि जैसे उस ने पूरा जीवन जी लिया. वह जड़वत उस एक शब्द को प्रतिध्वनित होते हुए महसूस कर रहा था.

कुछ समय बाद कालेज की ओर से छात्रों का समूह शैक्षणिक भ्रमण पर शिमला जा रहा था. परम के मित्र संदीप और चंदर ने कई बार परम को भी चलने के लिए कहा पर वह मना करता रहा, लेकिन जैसे ही उसे पता चला कि राखी भी जा रही है, एकाएक उस ने भी हामी भर दी.

बस की यात्रा के दौरान हंसीमजाक के दौर के बीच उसे राखी से बात करने का मौका मिल ही गया. सादगी की प्रतिमूर्ति राखी भी उस की बातों में दिलचस्पी लेती नजर आई तो उस का हौसला और बढ़ गया. चीड़ और देवदार के पेड़ों से आती खुशबू ने मानो उस के मन को भांप लिया था और पूरे मंजर को खुशनुमा बना दिया था.

‘‘आप बहुत कम बोलती हैं?’’

‘‘जी, ऐसी तो कोई बात नहीं है,’’ और फिर बातों का सिलसिला आरंभ हो गया.

परम ने महसूस किया कि राखी भी उस के नजदीक आने का प्रयास कर रही थी. ज्यादातर दोस्त अपनेअपने चाहने वालों में मस्त थे. अनजाने में परम ने राखी के हाथ को हलके से क्या छू लिया उसे ऐसा लगा कि जैसे उस ने सारा जहां पा लिया हो.

लौटते समय दोनों एकसाथ बैठे. औपचारिक वार्त्तालाप खत्म होते ही दोनों एकदूसरे से बहुत कुछ कहना चाहते थे, पर जबान साथ नहीं दे रही थी. गंभीर खामोशी के बीच अनवरत एकदूसरे को निहारते हुए परम और राखी चुप रहने के बाद भी आंखों से मानो सबकुछ कह रहे थे. इस खामोशी की आवाज दोनों के दिलों में गहरे तक उतरती जा रही थी.

शिमला से वापस लौटने के बाद कैंपस में वे अब साथसाथ नजर आने लगे. कैंटीन, लाइबे्ररी व कैंपस के पार्क उन की उपस्थिति के गवाह थे. बिना आवाज का यह सफर एक निष्कर्षहीन सफर था. उन दोनों के मध्य खामोशी ही उन की आवाज बन गई थी. खामोश रह कर सबकुछ कह देने का उन का अंदाज निराला था.

वे शांत बहती नदी की तरह ही थे. उन के दिल के हाल से प्रकृति भी खासी परिचित होती जा रही थी. पेड़, पत्ते, नदी, फूलों पर मंडराती तितलियां, सब ने ही तो उन के बारे में बातें करना शुरू कर दिया था.

कालेज कैंपस में उन के भविष्य को ले कर चर्चाएं आम होती जा रही थीं और वे स्वयं खयालों में डूबे एकदूसरे के पूरक बनते जा रहे थे.

शब्दों के बिना की अभिव्यक्ति यों तो सशक्त होती है पर कुछ भाव तो शब्दों के बिना व्यक्त हो ही नहीं सकते. कितना कठिन होता है केवल ‘3 शब्द’, ‘आई लव यू’ कहना.

यों तो वे खामोश रह कर भी हर पल यही दोहराते थे, पर उन दोनों के मध्य ये 3 शब्द तो थे, पर उन में आवाज नहीं थी. शायद वे दोनों किसी खास पल, खास माहौल का इंतजार कर रहे थे, जब इन शब्दों को मूर्त रूप दिया जा सके.

छुट्टियों के एक लंबे अंतराल के बाद इन 3 शब्दों के अभाव ने 5 शब्दों का प्रादुर्भाव कर दिया, ये 5 शब्द थे, ‘राखी की शादी हो गई.’ और फिर राखी लौट कर नहीं आई.

कैंटीन में बैठे हुए विगत को निहारते हुए परम ने खुद के हाथ का दूसरे हाथ से स्पर्श किया, जिस ने पहली बार राखी के हाथों का स्पर्श किया था, गहरे विषाद ने उस के अंतर्मन को झकझोर दिया. आखिर एक लंबे अरसे के बाद वह इस स्थान पर अकेला बैठा था. आज उस के साथ राखी नहीं थी.

एकांत में बैठा परम बारबार उन 3 शब्दों का उच्चारण कर रहा था, पर उसे सुनने वाला कोई नहीं था. अगर उस ने समय पर हिम्मत दिखाई होती तो चाहे जो होता, आज उसे गिला तो नहीं होता. वह कोने में यों अकेला तो न बैठा होता.

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