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“मैं क्या करूं. तेरी जान को रोऊं. जब देखो सिर पर सवार रहता है. दो मिनट की चैन नहीं. कभी यह तो कभी वह. महीनेभर मैं खटतीपिटती रहती हूं, उस की कोई कीमत नहीं. तेरे पापा को क्या, महीने में एक दिन  लाड़चाव लगाना रहता है. और तू, उन्हीं का माला  जपता  रहता है. सब की नजरों में मैं खटकती हूं. अब इस चप्पल को भी कब का बैर था मुझ से. इसे अभी ही टूटना था. मुझ से चला नहीं जाता,” रमा बिफर उठी. मुन्ना सहम गया. उस ने मां की पांव की ओर देखा, “सच्ची मम्मी, इन टूटी चप्पलों में कैसे चलेंगी?”

चप्पल मम्मी के गोरे पैरों का सहारा भर थीं वरना वह कब की  घिस चुकी थीं- बदरंग, पुरानी…

मुन्ना की आंखों के समक्ष मामियों की ऊंची एड़ी की मौडर्न, चमचमाती जूतियों का जोड़ा घूम गया. कितनी जोड़ी होंगी उन के पास. जब वे उन्हें धारण कर खटखटाती चलती हैं, कितनी स्मार्ट लगती हैं, किसी फिल्म तारिका जैसी. और उस की मम्मी, घरबाहर यही एक जोड़ी चप्पल… और आज वह भी टूट गया.

मुन्ना उदास हो गया. उस का बालसुलभ मन इन विसंगतियों को समझ नहीं सका. रमा किसी प्रकार अपना पैर संभालसंभाल मंजिल तक पहुंची. सामने खड़े अवध उसे एकटक देख रहे थे. नज़रें मिलते ही उन्होंने आंखें  झुका लीं.

कितने स्मार्ट लग रहे हैं अवध. लगता है नया सूट सिलवाया है- रौयल ब्लू पर लाल टाई, कार भी न‌ई खरीदी है. अरे वाह, क्षणभर के लिए ही सही उस की आंखें चमक उठीं.

मुन्ना पापा को देखते ही दौड़ पड़ा, “बाय मम्मी.”

“बाय.”

“पापा, न‌ई गाड़ी किस की है?” पापा को पा कर मुन्ना  सारे जग को भूल जाता है, शायद मां को भी.

“तुम्हारी है. तुम्हें कार की सवारी पसंद है न.”

“सच्ची, मेरे लिए, मेरी है,” उसे विश्वास नहीं हो रहा था.

पिछले सप्ताह वह मामा के कार में ताकझांक कर रहा था. उसे मामा के बेटे ने हाथ पकड़  कर ढकेल दिया था.

“मैं भी गाड़ी में बैठूंगा,” मुन्ने का मन कार से निकलने का नहीं कर रहा था.

मामा का  बेटा उसे परास्त करने का तरीका सोच ही रहा था, उसी समय बड़ी मामी सजीधजी कहीं जाने के लिए निकली. मुन्ने को कार में ढिठाई करते देख सुलग पड़ी, “पहले घर, अब कार. सब में इस को हिस्सा चाहिए. इन मांबेटा ने जीना दूभर कर दिया है, सांप का बेटा संपोला.”

मामी की कटुक्तियां  वह समझा या नहीं, लेकिन इतना अवश्य समझ गया कि इस खूबसूरत कार पर उस का कोई अधिकार नहीं है.

उसे, उस की मम्मी, उस के पापा से कोई प्यार नहीं करता. उस ने कार से उतरने में ही अपनी भलाई समझी. अभी जा कर मम्मी से सब की शिकायत करता हूं.

लेकिन मम्मी है कहां? वह रसोई में शाम की पार्टी की तैयारी में जुटी थी. बड़े मामा का प्रमोशन हुआ था और उन के शादी की सालगिरह भी थी. सभी व्यस्त थे, खरीदारी, घर की सजावट, रंगरोगन में. फ़ालतू तो वह और उस की मम्मी.

वह मम्मी के पास जा पहुंचा. आग की लपटों में मम्मी का गोरा रंग  ताम्ब‌ई हो रहा था. वह एक के बाद एक स्वादिष्ठ व्यंजन बनाने में हलकान हो रही थी. इस स्थिति में उन्हें परेशान करना सही नहीं.

“मम्मी, एक ले लूं.” लाल सुर्ख कचौड़ी की खुशबू उसे सदैव आकर्षित करती है.

मम्मी ने उंगली के इशारे से मना किया. उस के बढ़ते हाथ रुक गए.

“पूजा के बाद मिलेगा न, मम्मी?”

“हां मेरे लाल,” मम्मी ने लाड़ले को सीने से लगा लिया. मां का शरीर कितना गरम है. सीने में उबलते हुए जज़्बात चक्षु से भाप बन निकलने लगे.

“मेरा राजा बेटा, अपना होमवर्क करो. मैं थोड़ी देर में आती हूं.” वह जानता है मम्मी रात्रि के 12 बजे से पहले नहीं आने वाली. तब तक  वह  दुबक कर सो जाएगा.

मम्मी पार्टी समाप्त होने पर बचाखुचा काम समेटेंगी. 2 निवाले खाएंगी या ‘भूख नहीं है,’ कह कर छुट्टी पा लेंगी.  उसे एकबार मम्मी ने इसी तरह किसी पार्टी में एक मिठाई खाने के लिए दे दी थी. उस दिन कितना शोर मचा था. यों अपने बेटे को कुछ खाने के लिए देना दोनों मामियों को  कितना नागवार गुजरा था. उस दिन से मम्मी ने जैसे कसम खा ली थी. न कुछ उठा कर बेटे को देती थीं न खुद लेती थीं. अपने ही मांबाप के घर में; अपने लोगों के बीच दोनों मांबेटे किरकिरी बने हुए हैं.

सिर्फ मांग में सिंदूर पड़ जाने से, एक बच्चे की मां बन जाने से कोई इतना पराया हो जाता है. यही भाभियां रमा की एक‌एक अदा पर नयोछावर होती थीं. उस को खिलानेपिलाने में आगे रहती थीं. उन्हीं की नजरों में वह ऐसा गिर चुकी है.

“मम्मी, देखो, न‌ई गाड़ी मेरे लिए. तुम भी चलो, खूब घूमेंगे, पिकनिक पर जाएंगे. अपने दोस्तों को भी ले जाऊंगा,” मुन्ना खुशी से बावला हो रहा था.

अवध अपने बेटे का चमकता मुखड़ा निरेख रहे थे और रमा, बापबेटे के इस मिलन को किस प्रकार ले- हंसे या रोए. हंसना वह भूल चुकी है और रोना…इस आदमी के सामने जो उस के बेटे का बाप है.

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