बच्चों की डाक्टर होते हुए भी शिवानी सीधी, सरल और हंसमुख थी. जिस दिन उस की मां ने बताया कि उसे कोई डाक्टर देखने आ रहा है, मन में तरहतरह की कल्पनाएं करती शिवानी घर पहुंची.
डाक्टर शिवेन वर्मा और उन की बहन आए. डाक्टर वर्मा ने शिवानी से काफी देर तक बातें कीं. फिर सब खापी कर अपने घर चले गए. कुछ दिनों बाद शिवानी और डाक्टर शिवेन वर्मा विवाह के बंधन में बंध गए.
शिवानी नए घर में आ गई. ससुराल में उसे सभी का प्यार मिला, सभी प्यार से मिलते, बातें करते लेकिन उसे महसूस होने लगा कि डा. शिवेन खामोश और कुछ अलग किस्म के इनसान हैं. उन के यहां सुबह उठ कर एकदूसरे को विश करना मना था. जब भी शिवानी पति को ‘गुडमार्निंग’ कहती, डा. शिवेन को शिकायत होती कि दिन भर के लिए उन का मूड खराब हो गया.
जब तक शिवेन स्वयं से कोई बात न बताएं तो ठीक रहता लेकिन अगर शिवानी ने कुछ पूछ लिया तो मानो घर में भूचाल आ जाता था.
डा. शिवेन रात को क्लीनिक से आ कर खाना खाते ही टेलीविजन के आगे 4-5 घंटे बैठ कर कार्यक्रम देखते. शनिवार- इतवार ताश खेलने निकल जाते, पतिपत्नी का रिश्ता सिर्फ नाम का रह गया था.
शिवानी हमेशा शिवेन के गुस्से से डरती रहती. यह डर उस के दिलोदिमाग में इतनी गहराई से घर करता जा रहा था कि घर में शिवेन के आते ही वह दूरदूर रहती.
शिवानी को अपनी बड़ी ननद से पता चला कि शिवेन ने बचपन से ही अपनी मां को कभी ‘मां’ नहीं कहा था. शिवानी सोचती रही कि आखिर क्या कारण है कि शिवेन ने अपनी मां को ‘मां’ कह कर नहीं पुकारा. शायद मां से ही नफरत के चलते डा. शिवेन शिवानी पर अपना गुस्सा उतारते, लेकिन सालों बाद शिवानी को पता चला कि शिवेन की मां बचपन में उन की बहनों को ज्यादा प्यार देती थीं. सब से छोटा शिवेन हमेशा मां के प्यार के लिए तरसता रहता, कुढ़ता और चुपचाप रोता रहता.
मां से प्यार की कमी के कारण
डा. शिवेन को महिलाओं से नफरत सी हो गई थी. इसलिए वह हमेशा चाहते कि औरतों को दबा कर रखें और शिवानी उन की इस सोच का शिकार बन रही थी. प्यार के नाम पर बड़ी कंजूसी से ही प्यार के दो बोल बोलते.
डा. शिवेन के होंठों पर हंसी का नामोनिशान भी नहीं होता. हमेशा मुंह चढ़ा कर बैठता. विवाह के बाद दिन महीनों में और महीने सालों में बदल गए. शिवानी की जिंदगी में न कोई खुशी थी न कोई सुख.
वह क्लीनिक जा कर अपने मरीज को देखती. उस की अच्छीभली प्रैक्टिस चल रही थी. पार्टटाइम में भी वह नर्सिंग होम में जा कर काम करती. दोनों हाथों से कमा कर वह डा. शिवेन को देती पर उस की अपनी कमाई का हिसाब पूछने का उसे कोई हक न था. दिन की धूप में सायों की तरह कभी- कभार गलती से डाक्टरों के जिस्म छू जाते थे. शिखा के जन्म के बाद शिवानी को बड़ी उम्मीद थी कि शायद डा. शिवेन बदल जाएंगे पर उस का वह भ्रम भी टूट गया.
शिखा के साथ यदाकदा डा. शिवेन हंसतेखेलते पर ज्यादातर वह अपनी ही दुनिया में मस्त रहते. रोजरोज की बेरुखी से तंग आ कर शिवानी ने ससुराल में सासू मां के यहां जाने का फैसला कर लिया. वहां पहुंच कर उस ने बताया कि वह अब वापस शिवेन के पास नहीं जाएगी. 25 साल हो गए पर आज भी वहां जिंदा लाश की तरह घूमती रहती है.
शिवानी की बातें सुन कर उस की सासू मां को धक्का सा लगा. उन्होंने फौरन बेटे के पास जा कर रहने का फैसला लिया.
मां शिवेन के पास रहते हुए धीरेधीरे उसे प्यार के पालने में झलाने लगीं और अपनी उस भूल को सुधारने में वह कामयाब रहीं क्योंकि एक दिन शिवेन भी कहते हुए ‘मां’ से लिपट गए. मां ने अपने बेटे को समझया, ‘‘शिवेन, तुम हमेशा मेरे दिल में थे. मैं ने सब से ज्यादा तुम्हें प्यार किया है. आखिर तुम मेरा भविष्य और इस खानदान के वारिस हो. शायद तुम किसी के साथ प्यार बांटते हुए नहीं देख सके जबकि वे भी तुम्हारी सगी बहनें थीं.’’
कई महीनों के बाद मां वापस घर आ गईं और किसी तरह मना कर बहू शिवानी को फिर से शिवेन के पास भेजा, लेकिन जाते समय कई हिदायतें भी दीं कि शिवानी बेटी, किसी चीज में अपना दिल लगाओ, गाने सुनो, टेलीविजन देखो. एक बच्ची है उसे समय से देखो. तुम खुद से कुछ मत पूछना, जब दिल होगा शिवेन तुम्हें खुद बताएगा. और हां, शिवानी, तुम पार्टटाइम वाले पैसे से अपना अलग खाता खोल कर उस में पैसे जमा करो. यह जिंदगी है…कब कहां जरूरत पड़ जाए, किसे मालूम है.
शिवानी सास की कही बातों का अर्थ समझ न सकी फिर भी अपने खाली समय को व्यस्त रखने के लिए वह सुगम संगीत, योगा आदि करने लगी. वह सुबह उठ कर सैर के लिए जाती, बाकी समय क्लीनिक पर प्रैक्टिस और घर के घरेलू कामों में गुजारती. इस तरह दिन बीत जाता और थकहार कर बिस्तर पर गिरते ही नींद आ जाती. शिवानी हर समय अपने को मजबूत बना कर कम से कम बात करने की कोशिश करती. सालों से वह रात में अकेली सोती, क्योंकि उस को कभी शिवेन का इंतजार नहीं रहता. वह हर तरह से शिवेन से दूर रहती थी.
डा. शिवेन जिस ने उम्र भर शिवानी पर अपनी हुकूमत दिखाई, उसे बच्चों की तरह डरा कर रखा, अब खुद अकेला सा महसूस करता था. अकसर अब डा. शिवेन के सूखे होंठों पर हंसी दिखाई देती और वह जानबूझ कर शिवानी से कुछ न कुछ बात करने की कोशिश करता, लेकिन बरसों से डरीसहमी शिवानी का डर खत्म नहीं होता. वह नपेतुले शब्दों में जवाब देती. कभी डा. शिवेन रात को रंगीन बनाने की कोशिश करते तो शिवानी की तटस्थता को देख कर खामोश हो जाते. शिवेन शिकायत के लहजे में शिवानी से कह देते कि तुम तो बिलकुल साथ नहीं देतीं. बुत सी रहती हो. यह तो मैं ही हूं जो निभा रहा हूं.
शिवानी कहती, ‘‘रहने दो, डाक्टर साहब. साल में 365 दिन होते हैं सिर्फ 1 दिन नहीं होता. जब भूलेबिसरे गीतों की तरह आप आएंगे तो मैं क्या करूं.’’
बदलते वक्त के साथ डा. शिवेन भी अपने को काफी हद तक बदल चुके थे लेकिन बरसों से बनाए अपने व्यवहार में कभीकभी पुरानी पहचान बन कर गुस्सा अपनी झलक दिखाता. शिवानी एक कदम आगे बढ़ती पर जरा से गुस्से की झलक देख कर वह घबरा कर दो कदम पीछे हट जाती, लेकिन जल्दी ही फिर से उठ कर प्यार की डगर पर चलती.
धीरेधीरे शिवानी का डर खत्म हो रहा था, वह थोड़ीथोड़ी हंसने लगी थी. धीरेधीरे उस के मन का सूनापन भी खत्म होने लगा. हमेशा शिवानी केवल इस बात से भयभीत रहती कि कहीं शिवेन को गुस्सा न आ जाए. मन ही मन सास का शुक्रिया अदा करती तो कभी स्वयं से ही कहती, ‘‘काश, पहले मां से कहा होता. कभी शिवानी सोचती कि मुझे भी वक्त के साथ बदलना है. शायद तभी हमेशा