‘‘मैं ने अपने जीवन में आप के अलावा किसी और पुरुष का स्मरण तक नहीं किया है, कमिल. आप चाहें तो मेरी अग्निपरीक्षा ले लें.’’
‘‘नहीं, नहीं... राम बोलो सुधा, यहां मैं राम बन कर तुम्हारे सामने खड़ा हूं.’’
ऐसा सुन कर कमिल झल्ला गया था. सुधा के चेहरे पर भी क्षमा के भाव थे. दरअसल, रामलीला का मंचन महल्ले की कमेटी द्वारा किया जा रहा था.
इस रामलीला में कमिल राम का अभिनय कर रहा था और सुधा सीता का. पहले तो सुधा ने रामलीला में भाग लेने से ही मना कर दिया था. कमेटी की मुश्किल यह थी कि सीता के पात्र के लिए न केवल खूबसूरत लड़की चाहिए थी, वरन पढ़ीलिखी भी, ताकि वो पात्रों के डायलौग याद रख सके. कमेटी ने तो कमिल को भी राम का अभिनय करने को कहा था, पर कमिल ने निर्देशन करने का निश्चय कर लिया था.
जब सुधा ने साफ मना कर दिया, यहां तक कि अपने पिताजी को भी बोल दिया कि उसे परीक्षा की तैयारी करनी है और उस के पास इतना समय नहीं है कि वह अभिनय करे, तब कमिल को ही बीच में आना पड़ा था.
कमिल ने सुधा को समझाया था. सुधा ने भी साफसाफ कह दिया था,
‘‘अगर आप राम का अभिनय कर रहे हो, तो मैं सीता का अभिनय करने को तैयार हूं. मैं हर किसी के साथ अभिनय नहीं कर सकती.’’
सुधा की जिद के चलते कमिल को राम का किरदार निभाना पड़ा था और सुधा को सीता का. पर, पूरी रामलीला के मंचन में जाने कितनी बार सुधा ने राम के स्थान पर कमिल का ही नाम लिया था.