शूल पाणी
अखबार एक किनारे को सरका दिया मैं ने. सरकार की झूठी वाहवाही,’चीन में हम ने यह करा दिया’, ‘उस राष्ट्रपति ने उठ कर स्वागत कर दिया’, ‘वहां कौरीडोर बन गया’, ‘वहां एक हिंदू लङकी अगवा हो गई…’ आधी झूठी खबरें.
छुट्टी का दिन था. मन हलका करने के लिए मोबाइल खोला. जयदत्त का मैसेज फिर से देखा. घुटन सी होने लगी. जयदत्त बचपन में मेरा सहपाठी था. बड़ा ही भावुक, हिम्मती और आदर्शवादी. मैं सीधासादा और कुछकुछ दब्बू. साम्राज्यवाद के पैर उखाड़ फेंक देने का मार्क्सवाद और समाजवाद महात्मा गांधी का नारा देशभर में गूंज उठा था. मैं डर कर अलग रहा. जयदत्त आकंठ आंदोलन में कूद पड़ा. इस के लिए उस ने भरपूर कीमत चुकाई. पुलिस का घोर आतंक, जिन दिनों सहपाठी अच्छी नौकरियों पर लग रहे थे, वह हड़तालों, तोङफोङ करने वालों का सरगना बना था।
बूढ़े मांबाप कष्ट में मरे. पत्नी भी उसे वहीं मिली पर एक बार भागते हुए सिर पर गहरा घाव हो गया. ज्यादा साथ न दे सकी. एक पुत्री को छोड़ चल बसी. बिना मां की लङकी, बाप लंबे समय तक कभी इस राज्य में तो कभी कहीं. सीधीसादी मौसी ने उस का ब्याह रचाया.
जिन के हाथ में बाद में समाजवादी शासन आया, वे जनता की समस्याएं सुलझाने के बजाए खुद उसी के लिए एक समस्या बन गए. जयदत्त जैसे लोग, जिन का स्वाभिमान और देश और गरीबों के लिए त्याग की भावना बना रही, वहीं रह गए, जहां वे थे. सिर्फ कुर्क हुई जमीन उसे अपने साथ के अब मंत्री बन गए दोस्त की वजह से वापस मिल गई. लङकी की सालों के अरमान के बाद संतान हुई, लेकिन वह स्वयं दुखी जीवन से मुक्ति पा गई. क्योंकि सरकारी अस्पताल में नकली दवा रिएक्शन कर गई.
मांबाप और पत्नी को जो ममता, जो स्नेह जयदत्त नहीं दे पाया था, वह उस ने ब्याज सहित नातिन पर न्यौछावर कर दिया. अपने लिए कोई चाह उसे न थी. उस ने छोटामोटा व्यापार शुरू किया. लेकिन नातिन को आंख का तारा बना कर पालापोसा और पढ़ाया. उसी नातिन के लिए आज वह बेहद परेशान है.
मैसेज में उस के हृदय की वेदना फूट पड़ी. वह इतना ही चाहता है कि उस के ममेरे भाई ने उस की नातिन का ब्याह जहां ठहराया है, उस में कृपानिधान की मैट्रीमोनियल ऐजैंसी को घपला करने से जिस तरह भी हो, रोकूं.
छोटे कसबे में जयदत्त बेचारे को क्या खबर, वह किस के फंदे में फंस गया है. जयदत्त का ममेरा भाई कहां जा पड़ा कृपानिधान के घर में. लङकी वालों से कमीशन लेने के बाद भी वह और उस की फर्म कितनों की जिंदगियां चौपट कर चुकी है, इस की कोई गिनती नहीं है. उस का भाई और भाई का लङका, जिस से जयदत्त की नातिन की शादी तय हुई है, क्या बात करूं इस कृपानिधान से? मैं आगे बढ़ूं और वर भी खराब हुआ, बदमाश निकला, तो अनजाने में एक गलत काम का भागीदार बन जाने की ग्लानि मुझे नहीं कचोटेगी?
बात काफी आगे बढ़ चुकी है. लङकी का नाजुक मामला. समय निकलता जा रहा है. जयदत्त जानता था कि मैं इस मैट्रीमोनियल ऐजैंसी की रगरग पहचानता हूं क्योंकि कभी कृपानिधान मेरे दफ्तर में काम करता था.
अचानक मैसेज मिला. कृपानिधान का था,’आज दिन में आप से मिलने आऊंगा. कुछ काम है.’ व्हाट्सऐप मैसेजों को जिस जगह पर छोड़ा था, उस के आगे देखने ही जा रहा था कि बाहर किसी के आने की आहट सुनाई पङने लगी. तेजी से जा कर दरवाजा खोला तो कृपानिधान था। भरा शरीर, पेट कुछ बाहर निकला हुआ, चमकती आंखें, चूभती नजरें, दबी नाक, मोटे होंठ, मुंह फैला हुआ, सफेद शर्ट, काली पैंट, टाई भी लगाए हुए और डबल सोल वाले जूते.
लेखक- शूल पाणी