0:00
12:24

खुला सा आंगन. आंगन में ही है टूटाफूटा सा बड़ा दरवाजा और उस दरवाजे से लग कर 2 कमरे. कमरों से सटे हुए बरामदे में रसोई. यह है गंजोई का घर. 4 बेटियां और पत्नी है गंजोई के परिवार में. गंजोई की पत्नी सुगना पुरानी साड़ी की फटी पट्टियों से गुंथी रहती. मैली सी चारपाई पर गंजोई पैर फैला कर लेटा रहता और सुगना अपनी बातों से उस का मन बहलाया करती.  सुगना को पति की सेवा से फुरसत मिलती, तो घर की खोजखबर लेती. गंजोई तो अजगर था. दास मलूका का शुक्रिया अदा करता और अपने दाने के इंतजार में पड़ा रहता. गंजोई की बड़ी बेटी अंजू 15 साल से कुछ ऊपर. काली, ठिगनी, सुस्त, थोड़ी मोटी और चुपचुप सी रहती थी. वह लोगों के घरों में झाड़ूबरतन किया करती और धीरेधीरे उस ने अपनी दोनों छोटी बहनों को भी जानपहचान के घरों में काम पर लगवा दिया था.

अंजू के बाद वाली संजू 13 साल की दुबलीपतली, गठी हुई, उम्र के मुताबिक सही कदकाठी. खूबसूरत तो नहीं, पर बदसूरत भी नहीं थी वह. धीमी और मीठी आवाज. जल्दीजल्दी काम निबटाती. जिन घरों में काम करती, वहीं के बच्चों से वह अपना मन बहलाती. 8 साल की रंजू बेहद दुबली. गेहुआं रंग. उलझेउलझे तेल चुपड़े बाल और मैली सी फ्रौक. उस के काम में सब से ज्यादा फुरती थी. उस का मन मचलता था अपने साथ के बच्चों के साथ खेलने और भागनेदौड़ने के लिए, इसलिए वह जल्दीजल्दी काम करने की कोशिश में कुछ न कुछ गड़बड़ करती रहती और डांट सुनती रहती, पर थी धुन की पक्की. सब से छोटी रीना 6 साल की थी. अंजू के साथ काम पर जाती और उस की मदद करती. बरतन मांजना अभी वह सीख रही थी और झाड़ू ठीकठाक लगा लेती थी. कुलमिला कर सारी बहनें मिल कर दालरोटी का जुगाड़ कर लेती थीं.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...