जब कभी खेलों की बात चलती है, तो जेहन में एक सवाल आता है कि भारत में खेल ज्यादा लोकप्रिय हैं या खिलाड़ी? कुश्ती में भारत के सुशील कुमार ने साल 2008 के बीजिंग ओलंपिक में जब तक ब्रौंज मेडल नहीं जीता था, तब तक बहुत से लोगों को यह भी नहीं पता था कि वे पहलवान हैं या मुक्केबाज.
ताजा मिसाल लें, तो इस बार के रियो ओलंपिक में दुनिया का दिल जीतने वाली भारतीय जिमनास्ट दीपा करमाकर के वजूद से भी ज्यादातर भारतीय अनजान थे. पहलवान साक्षी मलिक और बैडमिंटन खिलाड़ी पीवी सिंधु का भी कमोबेश यही हाल था.
जिन खिलाड़ियों का अभी जिक्र किया गया है, उन्होंने तो ओलंपिक मेडल जीत कर या शानदार प्रदर्शन कर के भारत की जनता के दिलों में जगह बना ली है, लेकिन बहुत से ऐसे खेल हैं, जो ओलंपिक में शामिल नहीं हैं, फिर भी उन में बहुत से भारतीय खिलाड़ियों ने वर्ल्ड लैवल पर मेडल जीत कर देश का नाम रोशन किया है.
ऐसे ही एक खेल का नाम है किक बौक्सिंग. यह खेल बौक्सिंग से मिलता जुलता है, बस फर्क इतना है कि इस में खिलाड़ी अपने हाथों के साथ साथ पैरों का भी इस्तेमाल कर सकता है.
इसी खेल से जुड़े खिलाड़ी कृष्ण ठाकरान ने सितंबर, 2016 में रूस में हुए वर्ल्ड किक बौक्सिंग डायमंड कप में लाइट कौंटैंट कैटीगरी में गोल्ड और किक कौंटैंट कैटीगरी में सिल्वर मेडल जीत कर नया इतिहास बनाया है. इतना ही नहीं, इसी साल भारत के विशाखापट्टनम में हुई नैशनल किक बौक्सिंग चैंपियनशिप में उन्होंने गोल्ड मेडल जीता था और उस के बाद दक्षिण कोरिया में हुई एशियन किक बौक्सिंग चैंपियनशिप में ब्रौंज मेडल अपने नाम किया था.
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