पिछले कुछ साल से स्पोर्टस बायोपिक फिल्मों ने बॉक्स ऑफस पर काफी धमाल मचाया है. इस दौरान बड़ी स्क्रीन पर खिलाड़ियों की कई प्रेरणादायक कहानियां निकलकर सामने आई.
भारतीय क्रिकेट कप्तान महेंद्र सिंह धोनी की संघर्षपूर्ण कहानी हो या फिर समाज के विपरीत जाकर गीता फोगाट के स्वर्ण पदक जीतने की या अजहरउद्दीन के फिक्सिंग की कहानी, इन खिलाड़ियों के बायोपिक को दर्शकों ने काफी पसंद किया. मैरीकॉम की कहानी भी काफी प्रेरणादायक रही.
भारतीय खेलों पर शानदार फिल्म बनी, लेकिन ऐसे कई एथलीट हैं, जिन्होंने उपलब्धि हासिल करके देश का सम्मान बढ़ाया और संघर्षों से पार भी पाया. हालांकि यह मुमकिन नहीं कि भारत को गौरवान्वित करने वाले प्रत्येक एथलीट पर बायोपिक बने, लेकिन कुछ ऐसे दिग्गज एथलीट जरुर हैं जिनकी कहानी काफी प्रेरणादायक है और उनकी उपलब्धि बड़ी स्क्रीन पर दिखाई जा सकती है.
अभिनव बिंद्रा
अभिनव बिंद्रा किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं. वह एकमात्र भारतीय हैं, जिन्होंने व्यक्तिगत स्पर्धा में ओलंपिक गेम्स में स्वर्ण पदक जीता. निशानेबाज ने भारतीय झंडे का लगभग हर प्रतियोगिता में मान बढ़ाया. बिंद्रा ने अपने शांत रवैये और पेशेवर अंदाज से भारत का उच्च स्तर पर प्रतिनिधित्व किया.
अंजली भागवत के बाद भारतीय निशानेबाजी के पोस्टर बॉय अभिनव बिंद्रा बने. 2008 में पीठ दर्द की समस्या के बाद अभिनव ने शानदार वापसी की और भारत को ओलंपिक की व्यक्तिगत स्पर्धा में पहला स्वर्ण पदक जिताया. भले ही बिंद्रा अगले ओलंपिक में भारत को पदक नहीं जिता सके, लेकिन भारत में इस खेल की लोकप्रियता को बढ़ाने में उनका योगदान अतुलनीय है.
बिंद्रा ने अपनी किशोरावस्था में कई राष्ट्रीय स्तर के अवॉर्ड्स जीते. उन्होंने 18 की उम्र में अर्जुन अवॉर्ड और 19 की उम्र में राजीव गांधी खेल रत्न का पुरस्कार जीता. बीजिंग में अपार सफलता हासिल करने के बाद बिंद्रा को भारत के तीसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्मभूषण से सम्मानित किया गया.
उन्होंने 2016 रियो ओलंपिक के बाद अपने संन्यास की घोषणा की. बचपन से ही विद्वान होने से लेकर भारत को ओलंपिक की व्यक्तिगत स्पर्धा में स्वर्ण पदक दिलाने वाले बिंद्रा पर बड़ी स्क्रीन के लिए फिल्म बनाई जा सकती हैं.
पीटी उषा
हम सभी ने पीटी उषा का नाम जरुर सुना होगा, लेकिन हम में से शायद ही किसी को पता होगा कि उन्होंने 101 अंतर्राष्ट्रीय पदक जीते हैं. इसी बात से पता चलता है कि उन पर फिल्म बन सकती है जो काफी हिट भी साबित हो सकती है.
पयोली एक्सप्रेस के नाम से मशहूर पिलावुल्लाकंडी ठेक्केर्पराम्बिल उषा भारत के महान एथलीटों में से एक हैं. 1984 लॉस एंजेलिस ओलंपिक में 400 मीटर हर्डल स्पर्धा में उषा चौथे स्थान पर रही और बहुत ही कम अंतर से पदक जीतने से चूक गई. वह भारतीय महिला एथलीटों में सर्वश्रेष्ठ में से एक हैं.
उन्होंने 101 अंतर्राष्ट्रीय पदक जीते हैं और उनकी उपलब्धियां हमारी बॉलीवुड सेलिब्रिटीज के करियर से संभवतः बड़ी हैं. 16 की उम्र में उषा ने 1980 मास्को ओलंपिक में हिस्सा लिया और वह ऐसा करने वाली भारत की सबसे युवा स्प्रिंटर बनी.
उषा की कहानी काफी प्रेरणादायक है और उन पर एक अच्छी फिल्म बन सकती हैं. मौजूदा समय में उषा केरल में अपनी एकेडमी में कोचिंग दे रही हैं.
विश्वनाथन आनंद
आनंद शतरंज के महान खिलाड़ी हैं, जिन्होंने ज्यादा चर्चाएं तो नहीं बंटोरी, लेकिन देश को काफी सम्मान दिलाया है.
मध्य वर्गीय परिवार में जन्मे आनंद के पिता दक्षिण रेलवेज में महाप्रबंधक थे और उनकी मां गृहणी थीं. आनंद जब 6 वर्ष के थे तब उनकी मां ने ही उन्हें शतरंज खेलना सिखाया.
आनंद को अपने जमाने के सर्वश्रेष्ठ रैपिड शतरंज खिलाड़ियों में से एक माना जाता है. वह 2007-2013 तक शतरंज के बादशाह रहे. उन्होंने 2000, 2007, 2008, 2010 और 2012 में कुल मिलाकर 5 बार विश्व शतरंज चैंपियनशिप जीती. आनंद ने 6 बार शतरंज ऑस्कर जीता और वह उन 6 खिलाड़ियों में से एक हैं, जिन्होंने फिडे की रेटिंग सूची में 2800 का आंकड़ा पार किया. आनंद के नाम कई अंतर्राष्ट्रीय पदक भी दर्ज हैं और उनके ध्यान के आधार पर एक शानदार फिल्म बन सकती हैं.
कई अवॉर्ड्स के साथ ही ध्यान देने वाली बात यह है कि आनंद ने पद्मविभूषण, पद्मभूषण, राजीव गाँधी खेल रत्न, पद्मश्री और अर्जुन अवॉर्ड जीता.
पंकज आडवाणी
बिलियर्ड खिलाड़ी पंकज आडवाणी ने अपने नाम कई उपलब्धियां दर्ज कर रखी हैं. उनके बारे में रोचक तथ्य पढ़ना काफी रुचिकर है. महज 6 वर्ष की उम्र में अपने पिता की मृत्यु के बाद पंकज को उनके बड़े भाई डॉ श्री आडवाणी ने बिलियर्ड से परिचय कराया. श्री काफी मशहूर स्पोर्ट और परफॉरमेंस साइकोलोजिस्ट हैं. आडवाणी के कोच अरविंद सावुर ने उन्हें पहली बार रिजेक्ट कर दिया था क्योंकि वह काफी छोटे कद के थे. मगर बाद में उन्होंने इस पर ध्यान नहीं देते हुए अपनी निगरानी में पंकज को ट्रेनिंग दी.
पंकज ने 12 वर्ष की उम्र में अपना पहला खिताब जीता और फिर आगे चलकर कई रिकॉर्ड स्थापित किये. 18 की उम्र में पंकज ने चीन में आईबीएसएफ वर्ल्ड स्नूकर चैंपियनशिप जीती और ऐसा करने वाले सबसे युवा भारतीय खिलाड़ी बने.
आडवाणी ने 2005 में माल्टा में आईबीएसएफ वर्ल्ड बिलियर्ड चैंपियनशिप का खिताब जीता और वह पहले खिलाड़ी बने जिन्होंने समय और अंक दोनों के आधार पर मुकाबले जीते. यही उपलब्धि उन्होंने बैंगलोर में 2008 में दोबारा दोहराई.
आडवाणी ने 2014 से प्रो स्नूकर से संन्यास लिया क्योंकि वह बिलियर्ड्स पर अपना पूरा ध्यान लगाना चाहते थे. काफी लोकप्रियता हासिल कर चुके पंकज पर बायोपिक अवश्य बनाई जा सकती है.
कर्णम मल्लेश्वरी
अगर आप पहली बार यह नाम सुन रहे हैं तो बता दें कि आंध्र प्रदेश की कर्णम मल्लेश्वरी भारत की पहली महिला भरोत्तोलक और ओलंपिक में पदक जीतने वाली भारत की पहली महिला खिलाड़ी हैं.
2000 में सिडनी ओलंपिक में उन्होंने स्नैच में 110 जबकि क्लीन और जर्क में 130 किलोग्राम का वजन उठाया और कुल 240 किलोग्राम का वजन उठाया. उन्होंने बाद में कहा था कि उन्हें स्वर्ण पदक नहीं जीतने का मलाल है. आज तक मल्लेश्वरी ने अपनी लोकप्रियता बरकरार रखी है.
मल्लेश्वरी के अनुसार, उनके कोचों का गणित गलत रहा और स्वर्ण के लिए अंतिम एटेम्पट में उन्हें 137.5 किग्रा वजन उठाने के लिए कहा गया, जहां वह नाकाम रही. वह अगर 132.5 किग्रा का वजन उठा लेती तो भी स्वर्ण पदक जीत लेती.
उनके लिए सबसे बड़ी उपलब्धि सिडनी गेम्स ही हैं जहां उन्होंने 69 किग्रा वर्ग में पदक जीता. 1994 में मल्लेश्वरी ने इस्तांबुल में हुई वर्ल्ड चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता और 1995 में कोरिया में हुई एशियाई चैंपियनशिप में 54 किग्रा वर्ग में पदक जीता.
मल्लेश्वरी की संघर्षशील कहानी पर एक फिल्म जरुर बनना चाहिए.