1994 में रवांडा में जो कुछ हुआ, उसे शायद ही कोई भूल सके. तुत्सी और हुतु समुदाय के बीच नरसंहार ने रवांडा को बर्बाद कर दिया था. 100 दिन तक चले नरसंहार में 80000 से भी ज्यादा लोगों की जान चली गयी थी. कई परिवार उजड़ गए थे. लोगों ने अपना देश छोड़ पड़ोसी मुल्क में शरण ली थी. आज भी वहां के लोग सदमे है, अपने परिवार को याद करते हैं.
लेकिन सबसे अच्छी बात यह है कि दोनों समुदाय के लोग एक-दूसरे के करीब आने लगे हैं. इन समुदाय को करीब लाने में क्रिकेट शांतिदूत के रूप में काम कर रहा है. क्रिकेट के प्रति प्यार लोगों के बीच नफरत और दूरियां कम हो रही है.
क्यों हुआ था नरसंहार...
रवांडा में तुत्सी और हुतु समुदाय के लोगों के बीच संघर्ष होता रहा है. वहां एक समुदाय दूसरे समुदाय के ऊपर अपना हक़ जमाने की कोशिश करता रहा है. लेकिन 1994 में यही संघर्ष नरसंहार के रूप में बदल गया था. 1994 में रवांडा के राष्ट्रपति हेबिअरिमाना और बुरुन्डियान के राष्ट्रपति सिप्रेन की हवाई जहाज पर बोर्डिंग के दौरान हत्या कर दी गई थी.
उस वक्त हुतु समुदाय की सरकार थी और उन्हें लगा कि यह हत्या तुत्सी समुदाय के लोगों ने की है. इसके बाद नरसंहार शुरू हो गया था. हुतु सरकार ने अपने सैनिकों के जरिए तुत्सी समुदाय के लोगों को मारना शुरू किया. पूरे देश में यह आदेश दिया गया था कि जहां भी तुत्सी समुदाय के लोग दिखें, उन्हें मार दिया जाए. इस नरसंहार में 80000 से भी ज्यादा तुत्सी समुदाय के लोगों को मार दिया गया था. कई लोग छुपकर देश छोड़कर भाग गए थे.