भोपाल के नजदीक छोटे से कसबे गोरेगांव की रहने वाली 17 वर्षीय मनीषा कीर को बीते 4 वर्षों में शौट गन ट्रैक शूटिंग में 17 गोल्ड मैडल मिल चुके हैं, जिन में से 2 अंतर्राष्ट्रीय टूरनामैंट में प्राप्त हुए. उड़ती चिडि़या पर निशाना लगाना मनीषा के लिए बाएं हाथ का खेल है. हालांकि मनीषा ने भोपाल की नैशनल राइफल अकादमी से ट्रेनिंग ली है, मगर निशानेबाजी का पहला पाठ उन्होंने अपने पिता, जो पेशे से मछुआरे हैं, से पहले ही सीख लिया था. मछलियों पर निशाना लगा कर जाल बिछाने की कला ने ही मनीषा को अपने लक्ष्य के प्रति एकाग्र रहना सिखाया. अपनी सफलताओं की सब से अहम कड़ी अपने पिता को मानने वाली मनीषा से बातचीत के कुछ महत्त्वपूर्ण अंश इस प्रकार हैं:

आप की सफलता में आप के पिता का कितना सहयोग रहा?

मेरे पापा ही मेरी प्रेरणा के स्रोत हैं. किसी वस्तु पर निशाना लगाने के लिए जो एकाग्रता चाहिए होती है, वह मैं ने उन्हीं से सीखी है. मैं बचपन में पापा के साथ भोपाल के बड़े तालाब में मछलियां पकड़ने जाती थी. तब मैं देखती थी कि पापा कैसे मछलियों पर सारा ध्यान केंद्रित कर जाल बिछाते थे. शौट गन ट्रैक शूटिंग में भी निशाना साधने से पहले लक्ष्य पर फोकस करना पड़ता है तब जा कर निशाना सही लगता है.

क्या आज भी आप अपने पिता के साथ मछलियां पकड़ने जाती हैं?

ट्रेनिंग और टूरनामैंट्स की वजह से अब मैं घर पर ज्यादा वक्त नहीं बिता पाती हूं. लेकिन जब भी घर जाती हूं पापा के साथ मछलियां पकड़ने बड़े तालाब पर जरूर जाती हूं.

पिता की दी किस सलाह को आप हमेशा याद रखती हैं?

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