उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के गोमतीनगर विस्तार में बनी कालोनियों के पास एक कालोनी बसी है झुग्गीझोंपड़ी वालों की. यहां रहने वाले काली प्लास्टिक की पन्नी डाल कर झोंपड़ी बनाए हुए हैं. इन के सामने 8 मंजिली इमारतों में रहने वाले नईनई चीजों से अपना घर सजाते हैं जबकि झोंपड़ी में रहने वाले ये लोग पुराने सामान को ही थोड़ा ठीक कर के अपने प्रयोग में लाते हैं.

इन के घरों में बैट्री से चलने वाले बल्ब और पंखे लगे हैं. किसीकिसी झोंपड़ी में बैट्री से चलने वाले टीवी भी दिख जाते हैं. टूटीफूटी चारपाई किसी झूले सी दिखती है. इन झोंपड़ीनुमा घरों में रहने वालों को बंगलादेशी कहा जाता है. एकएक झोंपड़ी में 6 से 8 लोग मिल जाते हैं. सुबह होने से पहले जब सारा शहर नींद का सुख ले रहा होता है, तो ये लोग अपनी झोंपड़ी से निकल कर रात में शहरी लोगों द्वारा फेंका गया कूड़ा उठाते हैं. नगर निगम के सफाई कर्मचारी भी इन से अपना काम लेते हैं. बदले में इन को प्लास्टिक बीनने की इजाजत दे देते हैं.

20 साल की रेहाना की शादी 4 साल पहले हुई थी. उस के 2 बच्चे हैं. वह सुबह 4 बजे ही अपनी झोंपड़ी से निकल कर नाली किनारे या कूडे़ के ढेर में से पन्नी तलाश रही होती है. लोग पन्नी में बांध कर केवल घर का कूड़ा ही नहीं फेकतें, बल्कि इन में महिलाओं द्वारा इस्तेमाल किए गए सैनिटरी पैड तक होते हैं. प्लास्टिक के लालच में ये कूड़ा बीनने वाले उस को खोल कर प्लास्टिक वाली पन्नी अलग कर लेते हैं. इस काम को करने में न तो उन्हें गंदगी का एहसास होता है, न ही उन को किसी तरह की परेशानी होती है.

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