हमारे समाज में पढ़ाई और शादी से ले कर बच्चे पैदा करने तक की उम्र तय है. बचपन से ले कर किशोरावस्था को शिक्षा ग्रहण करने के लिए उत्तम माना गया है तो वहीं 20 की उम्र के बाद का समय नौकरी या आजीविका खोजने के लिए रखा गया है. 25 की उम्र गृहस्थ जीवन में प्रवेश के लिए सर्वोत्तम माना जाता है और इस के बाद आती हैं बच्चे पैदा करने, घर खरीदने, प्रमोशन जैसी चीजें. जीवन का यही चक्र है जो सदियों से चलता आ रहा है.

हालांकि, अब लोगों की सोच पहले से बहुत बदल गई है. भारत के बड़े शहरों में लड़कियां पढ़ाई और कैरियर को अहमियत देने लगी हैं और इस चक्कर में वे अपनी शादी अमूमन 30-35 साल की उम्र तक टालती रहती हैं. पेरैंट्स भी अपनी बेटियों को अपने पैरों पर खड़ा देखना चाहते हैं और इस वजह से उन पर जल्दी शादी के लिए दबाव नहीं डालते. इस का नतीजा होता है कि वे 30-35 साल तक अपनी बेटी के नखरे सहते रहते हैं.

उन्हें क्या पढ़ना है, कैसे रहना है, क्या कपड़े पहनने हैं, क्या खाना है, किस के साथ पार्टी करनी है, किन दोस्तों के साथ वक्त बिताना है, कितने महंगे गैजेट्स लेने हैं, कितनी औनलाइन शौपिंग करनी है, कितना समय मोबाइल में घुस कर बिताना है आदि सब लड़कियां खुद तय करती हैं और पेरैंट्स इन तमाम सुविधाओं को मुहैया कराने कि जद्दोजहेद में लगे रहते हैं. वे अपने कमाए रुपए अपने युवा बच्चों की ख़ुशी के लिए खर्च करते रहते हैं. अपने शौक दबा कर इन बच्चों के शौक पूरा करने की कोशिश में लगे रहते हैं. मांएं अपनी तबीयत की चिंता छोड़ अपने युवा बेटे/ बेटी और उन के दोस्तों के लिए खाना व स्नैक्स बनाने में लगी रहती हैं.

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