भारतीय जनता पार्टी की पौलिसियां ऐसी हैं कि बड़े अमीर उद्दोगपतियों के दिन अच्छे आ रहे हैं पर छोटे व्यापारियों पर गाज गिर रही है. शेयर मार्केट में जबरदस्त उछाल आ रहा है पर साधारण बाजारों व साप्ताहिक बाजारों में ठंडक बढ़ रही है. यह सरकार की जीएसटी, नोटबंदी, सीलिंग, औनलाइन अनुमतियों, कैशलैस व्यापार जैसी नीतियों की वजह से हो रहा है.
इन सब बातों से तमाम सवाल दिलोदिमाग पर गहरा असर करते हैं जैसे क्या कोई आदमी कम जमापूंजी लगा कर 10-12 कामगारों को अपने पास रख कर मोबाइल फोन बना सकता है और अगर ऐसा हो भी जाए तो क्या वह अपने बनाए गए मोबाइल फोन बाजार में बेच कर अच्छा मुनाफा कमा सकता है?
ऐसा मुमकिन सा नहीं लगता है, क्योंकि बाजार में कम दामों पर नई टैक्नोलौजी वाले मोबाइल फोन मुहैया हैं. मुहैया क्या उन की भरमार है जो बड़े पैमाने पर बनते हैं जिन में सैकड़ों लोग काम करते हैं और अरबों की पूंजी लगी होती है-धन्ना सेठों की.
दूसरा सवाल. क्या कोई आदमी कम पूंजी लगा कर 10-12 कामगारों को अपने पास रख कर अगरबत्ती और धूपबत्ती बनाने का कारोबार कर के मुनाफा कमा सकता है, चाहे उस का बनाया गया सामान ब्रांडेड न भी हो. हां, ऐसा हो सकता है और हो भी रहा है. वजह, ऐसे घरेलू सामान बनाने और उसे बेचने के लिए बड़े बाजार या किसी मौल की जरूरत नहीं होती है बल्कि अगर उन्हें अलगअलग शहरों, कसबों और यहां तक कि गांवों के साप्ताहिक बाजारों में भी बेचा जाए तो ग्राहक खूब मिल सकते हैं.
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