अगर वक्त रहते सरकार ने कोई कारगर कदम नहीं उठाया तो 2 अप्रैल को देश भर में हालात विस्फोटक हो जाने की आशंका से इंकार भी नहीं किया जा सकता. मुद्दा सुप्रीम कोर्ट का वह फैसला है जिसमें जस्टिस आदर्श गोयल और यूयू ललित की बेंच ने अपने एक ऐतिहासिक फैसले में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण ) अधिनियम – 1989 को एक तरह से निष्प्रभावी घोषित कर दिया है. इस बेंच ने अपने फैसले में स्पष्ट किया है कि एससी एसटी एक्ट के तहत कई फर्जी मामले सामने आए हैं और संसद ने यह कानून बनाते वक्त यह नहीं सोचा था कि इसका दुरुपयोग होगा.

इन कथित दुरुपयोगों को रोकने सबसे बड़ी अदालत ने नई गाइड लाइन जारी की है, जिसके तहत यदि कोई आरोपी अगर सरकारी कर्मचारी है तो तो उसकी गिरफ्तारी से पहले उसके उच्च अधिकारी से अनुमति लेना जरूरी होगा और गिरफ्तारी की अनुमति देने वाले जांच अधिकारी को कारण दर्ज कराना होगा. केस दर्ज करने से पहले डीएसपी स्तर का अधिकारी शुरुआती जांच करेगा. फैसले के जिस प्रावधान को लेकर दलित समुदाय सबसे ज्यादा तिलमिलाया हुआ है वह यह है कि अब आरोपी को अग्रिम जमानत मिल सकेगी.

दुर्भाग्य से यह दुर्भाग्यजनक फैसला ऐसे वक्त में आया है जब देश में वर्ग संघर्ष का सा माहौल है और आरक्षित वर्ग इस बात से भयभीत है कि धीरे धीरे केंद्र सरकार षड्यंत्रपूर्वक आरक्षण व्यवस्था खत्म कर रही है. (यह एक्ट भी उसके हिन्दू राष्ट्र के एजेंडे में रोड़ा था)  सोशल मीडिया पर ऐसी पोस्टों की भरमार है कि सुप्रीम कोर्ट के ब्राह्मणवादी जजों के इस तुगलकी फरमान से दलित अपने अधिकारों के लिए आवाज नहीं उठा पाएंगे और कल को दलितों को फिर से बीच चौराहे पर जलील किया जाएगा. यह फैसला दलितों पर पहले की तरह अत्याचार करने बाबत सवर्णों के लिए लायसेंस है वगैरह वगैरह .............

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