अर्जेंटीना में चाइल्ड लेबर कौन्फ्रैंस के दौरान ब्यूनस आयर्स में मुझे एक नई चीज दिखी. वहां की सड़कें लुटियन की दिल्ली की तरह की चौड़ी और पेड़दार हैं. वहां कुछ युवा 10-15 कुत्तों को एकसाथ ले जाते दिखे. कुत्ते एकदूसरे के साथ सट कर चल रहे थे और युवा का आदेश चुपचाप मानते दिख रहे थे. मुझे कम से कम 14 ऐसे युवा कुत्तों के झुंडों के साथ दिखे, मेरे ड्राइवर ने बताया कि यहां यह आम है. युवा डौग वाकिंग कंपनियों में काम करते हैं. वहां उन्हें कुत्तों को मैनेज करना सिखाया जाता है. उन का पखाना उठा कर थैली में रखना, उन से बातें करना और कहीं चोट लगने पर फर्स्ट एड करना भी सिखाया जाता है.

कंपनी ने एक ऐप बना रखा है. उस ऐप के जरीए कुत्ते का मालिक देख सकता है कि कुत्ते को कहां ले जाया जा रहा है, कहां पानी पीने की सुविधा दी गई. ये युवा कुत्ते के मालिक को ऐप के जरीए उन के कुत्ते की छोटीमोटी जरूरतों की सूचना भी दे देते हैं.

हर सेवा के दाम अलग

वाकिंग डौग कंपनियों की तरह वहां पैट टैक्सियां भी हैं, जो पालतू को नियत दिन डाक्टर के यहां ले जाती हैं या इमरजैंसी में काम करती हैं. कुत्तों की घरों में या कंपनी के क्लीनिक में देखभाल भी की जाती है ताकि मालिक निश्चिंत हो कर दफ्तर या टूअर पर जा सके.

सिर्फ पौटी कराने के लिए ले जाने की सुविधा भी कंपनियां देती हैं. हर सेवा का दाम अलग है पर सेवा उपलब्ध है.

काम के समय यदि आप को कुत्ते को घुमाने में देर हो रही हो तो वे स्पेयर चाबी से घर खोल कर कुत्ते को घुमाने भी ले जाते हैं, उसे पौटी भी करा देते हैं. इन कंपनियों ने छोटे, बड़े, बूढ़े सब तरह के कुत्तों के लिए अलगअलग सेवाएं तय कर रखी हैं.

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