उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से 56 किलोमीटर दूर उन्नाव जिले के माखी गांव की कविता (बदला हुआ नाम) के पिता और दोनों चाचा 15 साल पहले कुलदीप सेंगर के करीबी हुआ करते थे. एक ही जाति के होने के चलते उन में आपसी तालमेल भी बेहतर था. वे एकदूसरे के सुखदुख में साझीदार थे. कुलदीप सेंगर ने कांग्रेस से अपनी राजनीति शुरू की. चुनावी सफर में कांग्रेस कमजोर लगी तो वे विधानसभा का पहला चुनाव बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर लड़े और साल 2002 में पहली बार उन्नाव की सदर विधानसभा सीट से विधायक बने.

विधायक बनने के बाद जहां पूरा समाज कुलदीप सेंगर को ‘विधायकजी’ कहने लगा था, वहीं कविता के ताऊ उन्हें उन के नाम से बुलाते थे. लिहाजा, कुलदीप सेंगर ने अपनी इमेज को बचाने के लिए इस परिवार से दूरी बनानी शुरू कर दी. कविता के पिता और उन के दोनों भाइयों को लगा कि कुलदीप सेंगर के भाव बढ़ गए हैं, इसलिए वे किसी न किसी तरह से उन को नीचा दिखाने की कोशिश में लगे रहे. यह मनमुटाव बढ़ता गया.

कविता के ताऊ पर गांव माखी और दूसरे थाना क्षेत्रों में तकरीबन एक दर्जन मुकदमे दर्ज थे. शायद इसी रंजिश में तकरीबन 10 साल पहले उन्नाव शहर में भीड़ ने ईंटपत्थरों से हमला कर के कविता के ताऊ को मार दिया था. कविता के परिवार के लोगों ने इस घटना का जिम्मेदार विधायक कुलदीप सेंगर को ही माना था. कविता के ताऊ की मौत के बाद उस के चाचा उन्नाव छोड़ कर दिल्ली चले गए. वहां उन्होंने अपना इलैक्ट्रिक वायर का कारोबार शुरू किया. उन के ऊपर भी तकरीबन 10 मुकदमे दर्ज थे.

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