कासगंज के दंगों को ले कर बरेली के डीएम से ले कर उत्तर प्रदेश के राज्यपाल ने जो कहा वह सच है.  राज्यपाल ने कासगंज के दंगों को कलंक कहा. डीएम के खिलाफ सत्ता से ले कर कट्टरवादी संगठनों तक ने मोरचा खोल दिया पर राज्यपाल की बात पर वे चुप्पी साध गए. देखा जाए तो उत्तर प्रदेश के राज्यपाल की टिप्पणी कुछ वैसी ही है जैसी गुजरात में हुए दंगों के समय भाजपा नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने तब के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को राजधर्म का पालन करने का संदेश दिया था.

भाजपा के लोग डीएम की टिप्पणी को ले कर मुखर हैं, जबकि सांसद राजवीर सिंह, साध्वी निरंजन ज्योति और विनय कटियार के बयानों पर चुप्पी साधे रहे. कासगंज में हुए हादसे को राष्ट्रधर्म से जोड़ कर जिस तरह से प्रचारित किया गया उस से भावनाओं को भड़काने में मदद मिली. जिस का खमियाजा अकरम जैसे तमाम लोगों को भुगतना पड़ा.

लखीमपुर में रहने वाले अकरम की पत्नी अलीगढ़ में रहती थी. उस की पत्नी को बच्चा होने वाला था. अकरम कार से अलीगढ़ जा रहा था. कासगंज हाईवे पर दंगाइयों ने अकरम की कार को घेर लिया और तोड़फोड़ शुरू कर दी. अकरम को खूब मारापीटा. जैसेतैसे वह चोट लगने के बाद अस्पताल पंहुचा तो पता चला कि उस की दाहिनी आंख की रोशनी चली गई है. ऐसे लोगों की संख्या बहुत सारी है. कितने ही बेगुनाह लोगों से मारपीट कर उन की संपत्ति को नुकसान पहुंचाया गया.

कासगंज की घटना को सांप्रदायिक रंग दे कर वोटबैंक की राजनीति करने से पूरे समाज को नुकसान हो रहा है. देशप्रेम के प्रदर्शन में जोरजबरदस्ती का कोई स्थान नहीं होना चाहिए. ‘तिरंगा यात्रा’ के दौरान कार्यकर्ताओं का रंगढंग मुसलिम महल्ले के लोगों को रास नहीं आया. छोटी सी यह घटना दंगे में बदल कर कासगंज का कंलक बन गई.

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