बिहार की राजधानी पटना की सड़कों पर पिछले 3 साल से प्री-पेड ऑटो चलाकर अपने परिवार को बेहतर जिंदगी देने वाली रिंकू कुमारी बताती हैं कि उसके पति ठेला गाड़ी चलाते हैं. उनकी कमाई से परिवार का खर्च चलाने में काफी दिक्कतें आती थी. पहले उसने हौस्टल में खाना बनाने का काम शुरू किया, लेकिन उससे खास कमाई नहीं हो पाती थी और मेहनत भी कापफी करना पड़ता था. हर महीने में 3-4 हजार से ज्यादा की कमाई नहीं हो पाती थी.

उनके एक करीबी रिश्तेदार ने बताया कि महिलाओं के लिए ऑटो चलाने का काम काफी बेहतर है और कमाई भी अच्छी होती है. रिंकु ने ऑटो के बारे में पता किया और उसके बाद उसे चलाने की ट्रेनिंग ली. जब से रिंकु ने ऑटो चलाना शुरू किया है रोजाना 700 से 1000 रूपए तक की कमाई हो जाती है. रिंकी का सपना है कि उनकी तीनों बेटियां अच्छी तरह से पढ़-लिखकर बड़ी अपफसर बने. अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा वे बेटियों की पढ़ाई पर खर्च करती हैं. यह बताते हुए रिंकू की आंखें चमक उठती हैं कि उनकी बड़ी बेटी, नेहा डाक्टर बनना चाहती है और मंझली बेटी, रितू आईएएस अपफसर बनने की तैयारियों में लगी हुई है. छोटी बेटी अभी दसवीं क्लास में पढ़ रही है.

रिंकू कहती हैं कि बेटियों को बड़ा अपफसर बनाना ही उनकी जिंदगी का मकसद है. बेटियों की पढ़ाई में कोई दिक्कत न हो, इसलिए वह जी तोड़ मेहनत कर रही है. रिंकू जैसी कई महिला ऑटो रिक्शा ड्राइवर महिलाओं की मजबूती और मेहनत की नई कहानी लिख रही हैं. रिश्तेदारों के ताने और उलाहने को सुनने के बाद भी सभी अपनी धुन में लगी हुई हैं.

ऑटो रिक्शा ड्राइवर सरिता पांडे बताती हैं, ‘मैने अपने परिवार को ठीक तरह से चलाने के लिए और माली हालत को मजबूत करने के लिए ऑटो रिक्शा चलाने का काम शुरू किया है.’ जब उनसे पूछा गया कि महिलाओं को कमजोर समझा जाता है, उसके बाद भी वह इतनी मेहनत कैसे कर लेती हैं? इसके जबाब में सरिता कहती हैं, ‘मैं अपनी मेहनत से अपने परिवार और समाज को यह बताने में कामयाब रही हूं कि औरत हर काम कर सकती है, उन्हें मर्दों से कमजोर नहीं समझा जाए.’ समाज के पुराने और घिसे-पिटे ढर्रे को आज महिलाएं हर क्षेत्रा में तोड़ रही हैं और कामयाबी की नई मंजिलें तय कर रही हैं.

हमें इस बात से कोई मतलब नहीं है कि समाज क्या कहेगा? कुछ करो या न करो, समाज तो हर हाल में खिल्ली उड़ाता है.  28 साल की पिंकी कुमारी को इस बात का कोई मलाल नहीं है कि लोग क्या कहेंगे? वह कहती हैं, ‘मैंने अपने बच्चों को अच्छी परवरिश देने और उनके लिए बेहतर शिक्षा का इंतजाम करने के लिए ऑटो रिक्शा चलाती हूं. वहीं 12वीं तक पढ़ी गुड़िया सिन्हा को इस बात का फक्र है कि वह अपनी मेहनत और लगन के बदौलत आज अपने पैरों पर खड़ी हो चुकी हैं और अब उन्हें वक्त-बेवक्त रूपयों की जरूरत पड़ने पर उसे किसी के आगे हाथ नहीं फैलाना पड़ता है.

इनके अलावा कई महिला ऑटो रिक्शा ड्राइवर फर्राटे के साथ कामयाबी की मंजिलें तय कर रही हैं. अनीता पांडे, शोभा कुमारी, विनीता मिश्रा, कंचन कुमारी, कोमल, अनिता कुमारी समेत कई महिला ऑटो ड्राइवर की आंखों में कुछ बेहतर कर गुजरने का जज्बा साफ दिखाई देता है. यह सभी महिलाएं बिहार के अलग-अलग हिस्सों से ताल्लुक रखती हैं, पर सभी ने एक तरह का काम शुरू किया है.

बिहार की राजधनी पटना की सड़कों पर यह लोग फर्राटे से ऑटो रिक्शा चला रही हैं. साल 2013 में पटना में पहली बार औरतों के जत्थे ने ऑटो रिक्शा चलाने का काम शुरू किया है. महिला ऑटो ड्राइवरों की ओर से प्री पेड ऑटो सर्विस शुरू किया गया. पहले फेज में पटना में साल 2013 में 10 लड़कियों को अपने पैरों पर खड़े होने के लिए ऑटो रिक्शा चलाने की ट्रेनिंग दी गई थी. आज की तारीख में करीब 150 से ज्यादा औरतें और लड़कियां ऑटो रिक्शा चलाने की ट्रेनिंग ले रही हैं. दिलचस्प बात यह है कि इस योजना को सरकार ने नहीं बल्कि बिहार ऑटो रिक्शा चालक संघ और पटना जिला ऑटो रिक्शा चालक संघ की ओर से शुरू किया है.

पटना ऑटो रिक्शा चालक संघ के सचिव नवीन मिश्रा बताते हैं, ‘केरल के कन्नूर जिले में सीआईटीयू के जलसे के दौरान उनसे कुछ महिला ऑटो ड्राइवरों से मुलाकात हुई थी, उसी समय उन्होंने मन बना लिया था कि पटना में महिलाओं को ऑटो चलाने की ट्रेनिंग देने की शुरूआत करेंगे. जब इसके बारे में अखबारों के जरिए एलान किया किया तो काफी तादाद में लड़कियों और महिलाओं ने ऑटो रिक्शा चलाने की ट्रेनिंग लेने में दिलचस्पी दिखाई.

महिला ड्राइवरों के साथ ऑटो में बैठ कर महिला सवारी खुद को सुरक्षित महसूस करती हैं. ऑटो रिक्शा ड्राइवर गुड़िया सिन्हा कहती हैं, ‘औरतों को अगर घर की चौखट से बाहर निकलने दिया जाए तो वह अपनी प्रतिभा दिखा सकती हैं और यह साबित कर सकती हैं कि वह किसी भी सूरत में किसी से कम नहीं हैं. जब महिलाएं हवाई जहाज उड़ा सकती हैं तो ऑटो रिक्शा क्या चीज है?’

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