शमा से उजाला भी फैलता है और आग भी लग सकती है. दादागीरी भी एक ऐसा फेनोमेना है जिस की परिभाषा बहुत विस्तृत है. अपने व्यक्तित्व को निखारने और कैरियर को संवारने के लिए जोश व लगन के साथ परिश्रम और डिटरमिनेशन का नाम ही दादागीरी है. अत्याचार के खिलाफ उठ खड़े होना भी दादागीरी है जोकि सराहनीय है, क्योंकि समाज को ऐसे ही दादाओं की जरूरत है, जो आगे बढ़ें और अन्याय के विरुद्ध आवाज बुलंद कर सकें. हां, इस सीमा से आगे बढ़ने पर वही दादागीरी स्वयं और समाज दोनों के लिए बरबादी का कारण बन कानून के खिलाफ हो सकती है और भारतीय दंड विधान की धाराओं के अनुसार दंडनीय हो सकती है.
दादागीरी के अंतर्गत भारतीय दंड विधान की निम्न धाराएं लागू होती हैं :
1. धारा 141 से 149 तक.
2. धारा 319 से 338 तक.
3. धारा 349 से 374 तक.
4. धारा 405 से धारा 409 तक.
5. धारा 499 से धारा 510 तक.
किशोरों में बहुत जोश होता है. वे मौके और माहौल का खयाल किए बिना ऐसे कार्यों में कूद पड़ते हैं जो आगे चल कर उन के भविष्य के लिए कठिनाइयां खड़ी कर सकते हैं.
दादागीरी का नकारात्मक पहलू
मैडिकल, इंजीनियरिंग तथा अन्य प्रोफैशनल कालेजों में दादागीरी का अत्यंत भयानक रूप नजर आता है. कड़े परिश्रम के बाद छात्र इन संस्थाओं में प्रवेश पाते हैं. अपने परिवारों से दूर होस्टल्स में उन्हें रहना पड़ता है. अजनबी माहौल में अनजाने लोगों के साथ सामंजस्य बैठाना बहुत मुश्किल होता है. ऐसे में उन्हें रैगिंग के आतंक से भी जूझना पड़ता है.
पूर्वी और दक्षिण भारत में आमतौर पर देखा गया है कि वहां के सीनियर छात्र फ्रैशर्स के साथ अच्छा व्यवहार करते हैं, कुछ तो बड़े भाई या बड़ी बहन जैसा प्यार देते हैं और पढ़नेलिखने व अन्य कार्यों में भी उन्हें प्रोत्साहित करते हैं.