‘पिंक सिटी’ जयपुर की रेलवे कालोनी के पास ही बने पौश इलाके बनिपास में रहने वाले बालक प्रदीप को डांस का बड़ा शौक था. 80 के दशक में बाल प्रतिभाओं को निखारने के लिए स्कूलों में बाल सभाएं हुआ करती थीं और तीसरे दर्जे में पढ़ने वाले प्रदीप का घाघराचुन्नी में राजस्थान का पारंपरिक डांस खूब पसंद किया जाता था.
प्रदीप को अपनी बहन के कपड़े पहनने में खास दिलचस्पी होती थी और स्कूल से लौट कर वह अपनी मां की साड़ी शरीर पर लपेट कर कालोनी में मस्ती करने चला जाया करता था.
कालोनी के बच्चे प्रदीप को छेड़ते, पर बचपन की हंसीठिठोली में सबकुछ सामान्य रहता. 5वें दर्जे में प्रदीप ने गृह विज्ञान को विषय के रूप में चुना. उस के हाथों का बना खाना इतना स्वादिष्ठ और लाजवाब होता था कि टीचर भी वाहवाह करते थे.
प्रदीप अपने खेल टीचर को बहुत पसंद करता था. उस ने मां से जिद की कि वह अपने खेल टीचर के यहां पढ़ने जाएगा. दरअसल, खेल टीचर का उस को सहलाना बहुत पसंद आता था.
एक दिन कालोनी के एक लड़के ने, जो प्रदीप से 3-4 साल बड़ा था, चुपके से प्रदीप को पकड़ लिया और उस के अंगों को सहलाने लगा. कालोनी के ही किसी लड़के ने यह बात प्रदीप के घर जा कर बता दी. प्रदीप की बहन ने अपने भाई का बचाव किया, लेकिन प्रदीप चुपके से छत पर आ कर रोने लगा. उस की मां और बहन उस के पास गईं.
मां ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘जैसे भी हो, तुम मेरे जिगर का टुकड़ा हो. देशी घी का लड्डू टेढ़ा ही सही, मेरा है. तू हमारा दीप नहीं, घर को महकाने वाला पुष्प है.’’ मां का अपार स्नेह प्रदीप पर बरस रहा था, लेकिन वे यह जान गई थीं कि उन के जिगर का टुकड़ा प्रदीप नहीं पुष्पा है.
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